ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी हवाई हमलों के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और उनकी सरकार ‘सांप-छछूंदर’ वाली स्थिति में फंस गई है। एक तरफ उन्हें ईरान और अपने देश के भीतर से इस्लामी कट्टरपंथी समूहों के बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ रहा है, जो अमेरिका के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने की मांग कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ उन्हें अपने मुख्य वित्तीय दाता अमेरिका को नाराज करने का जोखिम भी नहीं उठाना है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या पाकिस्तान, अपने ही सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर द्वारा पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लिए किए गए नोबेल शांति पुरस्कार के नॉमिनेशन को अब रद्द करेगा?
ट्रंप के नॉमिनेशन का अतीत
यह बात 2020 की है, जब तत्कालीन आईएसआई प्रमुख जनरल आसिम मुनीर ने डोनाल्ड ट्रंप को अफगानिस्तान में शांति प्रयासों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार देने की वकालत की थी। उस समय पाकिस्तान, अमेरिका के साथ अपने संबंधों को बेहतर बनाने और आर्थिक सहायता प्राप्त करने का इच्छुक था। मुनीर ने ट्रंप के प्रयासों को “ऐतिहासिक” बताया था और पाकिस्तान ने उस समय अमेरिका के साथ मिलकर अफगानिस्तान में तालिबान के साथ बातचीत को बढ़ावा दिया था।
ईरान हमले के बाद बदली स्थिति
ईरान पर हालिया अमेरिकी हमलों ने पाकिस्तान के लिए स्थिति जटिल बना दी है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इन हमलों की निंदा की है, लेकिन यह निंदा भी काफी संयमित और सतर्क रही है। ईरान के साथ पाकिस्तान की सीमा लगती है और दोनों देशों के बीच शिया-सुन्नी आबादी को लेकर संवेदनशील मुद्दे भी हैं। ईरान में शिया बहुमत है, जबकि पाकिस्तान में शिया अल्पसंख्यक हैं, लेकिन उनकी बड़ी आबादी है। ऐसे में ईरान के साथ किसी भी तरह के तनाव से पाकिस्तान के भीतर भी सांप्रदायिक अशांति फैलने का खतरा है।
दूसरी ओर, पाकिस्तान अपनी चरमरा चुकी अर्थव्यवस्था के लिए अमेरिका और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से वित्तीय सहायता पर बहुत अधिक निर्भर है। अमेरिका को नाराज करने का मतलब पाकिस्तान के लिए गंभीर आर्थिक परिणाम हो सकते हैं।
शहबाज शरीफ के सामने अब एक विकट दुविधा है
- ईरान को संतुष्ट करना: उन्हें ईरान की संप्रभुता का सम्मान करने और अपने देश के भीतर से उठ रही मुस्लिम राष्ट्रवादी आवाजों को शांत करने के लिए अमेरिका की कड़ी निंदा करनी होगी।
- अमेरिका को नाराज न करना: उन्हें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उनकी आलोचना इतनी तीखी न हो कि अमेरिका उनकी आर्थिक सहायता रोक दे या पाकिस्तान पर प्रतिबंध लगा दे।
जनरल मुनीर का ट्रंप के लिए नोबेल नॉमिनेशन अब पाकिस्तान के लिए एक अजीब स्थिति पैदा कर रहा है। क्या पाकिस्तान इस नॉमिनेशन को रद्द करने जैसा कोई प्रतीकात्मक कदम उठाएगा ताकि ईरान और घरेलू आलोचकों को खुश किया जा सके? या वे इस मुद्दे पर चुप्पी साधेंगे ताकि अमेरिका के साथ संबंधों को और खराब न किया जाए? शहबाज सरकार के लिए यह एक नाजुक संतुलन है, जहां उन्हें हर कदम बहुत सोच-समझकर उठाना होगा।