अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गुरुवार को व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिस में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर से मुलाकात की। यह मुलाकात बंद दरवाजों के भीतर हुई, जिसमें प्रेस को जाने की अनुमति नहीं थी। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के खिलाफ भारी टैरिफ और रूस-यूक्रेन युद्ध पर बढ़ते दबाव के बीच ट्रंप का पाकिस्तान को महत्व देना, भारत के लिए महत्वपूर्ण संकेत देता है।
गोपनीय मुलाकात और लंबा इंतजार
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शरीफ शाम 5 बजे से कुछ पहले व्हाइट हाउस पहुंचे और प्रतिनिधिमंडल 6:18 बजे बाहर गया। रिपोर्ट्स के अनुसार, दोनों शीर्ष पाकिस्तानी नेताओं को ट्रंप से मिलने के लिए करीब एक घंटे तक इंतजार करना पड़ा, जिस पर कई विशेषज्ञों ने निराशा व्यक्त की। हालांकि, मुलाकात के ठीक पहले ट्रंप ने दोनों मेहमानों को ‘महान नेता’ कहकर संबोधित किया था।
पाकिस्तानी सरकार के शीर्ष सूत्रों ने इस बातचीत को बेहद महत्वपूर्ण और सुरक्षा केंद्रित बताया। सूत्रों के अनुसार, यह बैठक पाकिस्तान-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी, आर्थिक सहयोग, आतंकवाद का मुकाबला और निवेश के अवसरों पर केंद्रित थी। यह मुलाकात दोनों देशों के बीच जुलाई में हुए व्यापार सौदे और हाल ही में ट्रंप की अरब और मुस्लिम देशों के साथ बैठक के बाद हुई है, जो दोनों देशों के फिर से मजबूत होते संबंधों का संकेत है।
पाकिस्तान का अमेरिका की ओर झुकाव
पाकिस्तान की शरीफ सरकार ट्रंप प्रशासन के साथ संबंध सुधारने के लिए पूरा जोर लगा रही है। अतीत में (ओसामा बिन लादेन के पाकिस्तान में पाए जाने के बाद) ट्रंप ने 2018 में इस्लामाबाद को ‘झूठ और धोखे’ के लिए आलोचना की थी।
लेकिन अब स्थिति बदलती दिख रही है। इसकी झलक सितंबर में शरीफ के आवास पर हुए एक हाई-प्रोफाइल समझौते पर हस्ताक्षर से मिली, जो पाकिस्तान से अमेरिका को महत्वपूर्ण खनिजों और दुर्लभ मृदा तत्वों की आपूर्ति से संबंधित था। इसके अलावा, ट्रंप ने पाकिस्तानी आयात पर टैरिफ को कम करके 19 प्रतिशत पर रखा है, जबकि भारतीय आयात पर यह 50 प्रतिशत है।
भारत के लिए क्या हैं मायने?
ट्रंप की यह मुलाकात भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण समय पर हुई है। एक ओर अमेरिका ने भारत पर 50% का भारी टैरिफ लगाया है, वहीं दूसरी ओर ट्रंप प्रशासन रूसी तेल खरीदने से रोकने के लिए भारत पर दबाव बना रहा है, यह तर्क देते हुए कि इससे यूक्रेन में मॉस्को के युद्ध को फंडिंग मिल रही है। वॉशिंगटन से मजबूत रिश्ते कंगाल पाकिस्तान को अनुदान में मदद दिला सकते हैं, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था को सहारा मिलेगा।
पाकिस्तान एक दोराहे पर
विशेषज्ञों का कहना है कि इस मुलाकात के साथ पाकिस्तान के सामने बड़ी मुश्किल आ सकती है। ट्रंप को खुश करने के लिए उसे अमेरिकी योजना पर काम करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। इसमें अमेरिका को बगराम एयरबेस वापस पाने में मदद करना, गाजा और सऊदी शांति योजना पर अमेरिका के साथ काम करना, और ईरान को परमाणु निरस्त्रीकरण में मदद करना शामिल हो सकता है।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अगर पाकिस्तान का सैन्य या राजनीतिक नेतृत्व इन शर्तों पर हामी भरता है, तो उसे अपने ही देश में भारी विरोध का सामना करना पड़ सकता है और यह उसके लिए बहुत खतरनाक हो सकता है, जिससे पाकिस्तान एक मुश्किल राजनीतिक जाल में फंस सकता है।