भाजपा भले ही सत्ता में आ गई है लेकिन जिस तरह उसे उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और बिहार में नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई के लिए संगठन की चूलें कसना जरूरी है। यही वजह है कि जेपी नड्डा को मंत्री बना दिया गया है और एक नेता एक पद के सिद्धांत का पालन करते हुए अब नया अध्यक्ष चुना जाना है। पहले अमित शाह, शिवराज सिंह चौहान, मनोहर लाल, भूपेंद्र यादव के नाम चर्चाओं में थे, लेकिन अब ये मंत्री बन गए हैं। ऐसे में अब अध्यक्ष पद की कमान कोई नया चेहरा संभालेगा। 2004 में भी ऐसा ही हुआ था, जब अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में एनडीए की हार हुई थी। तब आरएसएस ने स्पष्ट कह दिया था कि दिल्ली से कोई भी अध्यक्ष नहीं बनेगा। और हुआ थी ऐसा ही जब प्रदेश की राजनीति से उठकर नितिन गडकरी सीधे राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए।
व्यक्ति आधारित राजनीति खत्म होगी?
जिस तरह संघ के तेवर हैं और मोहन भागवत ने खरी-खोटी सुनाई है, उससे साफ है कि कोई नया चेहरा आएगा और बीजेपी में व्यक्ति आधारित राजनीति खत्म हो जाएगी। अगर ऐसा हुआ तो यह मोदी युग का पराभव होगा। संभव है 2029 में किसी नए नेता की अगुवाई में लोकसभा चुनाव लड़ा जाए। -इसी साल महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं। 2027 में यूपी विधानसभा चुनाव में दमदार वापसी करना भी बड़ी चुनौती है।
इन नामों की है चर्चा, जानें किसका पलड़ा भारी
-अध्यक्ष पद की दौड़ में महाराष्ट्र से पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े, बीएल संतोष, ओम माथुर, अनुराग ठाकुर, के लक्ष्मण, सुनील बंसल के अलावा स्मृति ईरानी के नाम भी हैं।
-विनोद तावड़े का पलड़ा भारी है। पहला तो वे महाराष्ट्र से आते हैं और दो दशक से संगठन का अनुभव है। वह बचपन से ही संघ से जुड़े हैं।
-के. लक्ष्मण ओबीसी कोटे से अध्यक्ष बन सकते हैं। संगठन की दृष्टि से बीएल संतोष और ओम माथुर की दावेदारी भी तगड़ी है।
-जिस तरह अनुराग ठाकुर को मंत्री नहीं बनाया गया, तो उनका दावा भी मजबूत है, लेकिन लगता नहीं कि इस बार उन्हें मौका मिलेगा।
-स्मृति ईरानी भी रेस में हैं, लेकिन उनका बड़बोलापन और चुनाव में हार उनकी राह का रोड़ बन सकती है।