राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना 1925 में विजयदशमी के दिन सिर्फ पांच स्वयंसेवकों के साथ हुई थी, और लगभग 100 साल बाद यह भारत की राजनीति और समाज की सबसे प्रभावशाली ताकतों में से एक बन गया है।
आरंभिक चरण और विचारधारा (1925-1940)
आरएसएस की पहली शाखा 28 मई, 1926 की सुबह नागपुर के मोहिते वाडा में लगी, जिसमें लगभग 15-20 युवक खाकी वर्दी में अनुशासित तरीके से अभ्यास कर रहे थे। इस नवोदित प्रयोग के केंद्र में डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार थे।
- प्रेरणा और हताशा: हेडगेवार गांधीवादी आदर्शवाद और क्रांतिकारी राष्ट्रवाद दोनों से प्रभावित थे, लेकिन उनका मानना था कि भारत की असली समस्या हिंदुओं की फूट व कमजोरी में निहित है। वह महात्मा गांधी की मुस्लिमों को आवश्यकता से अधिक सहयोग देने की नीति से हताश थे।
- लक्ष्य: उनका मानना था कि कट्टरपंथी मुसलमानों और अंग्रेजों का मुकाबला सिर्फ हिंदू समाज को संगठित करके ही किया जा सकता है। इस प्रकार, आरएसएस का जन्म हिंदुओं को संगठित करने की सांस्कृतिक परियोजना के रूप में हुआ।
गोलवलकर का नेतृत्व और विस्तार (1940-1973)
हेडगेवार के निधन के बाद, एमएस गोलवलकर (गुरुजी) केवल 34 वर्ष की आयु में संघ प्रमुख बने। उन्होंने संघ को राष्ट्रीय शक्ति में बदलने के लिए उसे विचारधारा और संगठन प्रदान किया।
- प्रचारक प्रणाली: गोलवलकर ने अविवाहित, पूर्णकालिक मिशनरियों की प्रचारक प्रणाली को व्यवस्थित किया, जो संघ की रीढ़ बन गई और जिसने अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी सरीखे नेताओं को जन्म दिया।
- आजादी के बाद संकट: 1948 में पूर्व स्वयंसेवक नाथूराम गोडसे द्वारा महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। हालांकि गांधीजी की हत्या में संघ को प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं माना गया, फिर भी कलंक गहरा था।
- संविधान और विस्तार: 1949 में प्रतिबंध हटने के बाद, संघ ने लिखित संविधान अपनाया और गैर-राजनीतिक भागीदारी के लिए प्रतिबद्ध हुआ। इस दौरान भारतीय जनसंघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, विश्व हिंदू परिषद जैसे सहयोगी संगठनों का गठन हुआ।
आपातकाल, राम मंदिर आंदोलन और आधुनिकीकरण (1973-2009)
मधुकर दत्तात्रेय देवरस (बालासाहेब देवरस) 1973 में संघ प्रमुख बने।
- राजनीतिक भागीदारी: आपातकाल (1975-77) के खिलाफ जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में संघ पहली बार किसी राजनीतिक आंदोलन का हिस्सा बना।
- राम जन्मभूमि आंदोलन: देवरस को हिंदू राष्ट्रवाद को नागरिक राष्ट्रवाद की भाषा में ढालने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने ही राम जन्मभूमि आंदोलन के बीज बोए और विश्व हिंदू परिषद को जागृत किया।
- पारदर्शिता और गठबंधन: राजेंद्र सिंह (रज्जू भैया) ने 1994 में संघ प्रमुख बनकर पारदर्शिता को संस्थागत रूप दिया। उनके तालमेल ने वाजपेयी सरकार के लिए गठबंधन राजनीति की राह आसान की।
- संघर्ष: वर्ष 2000 में केएस सुदर्शन ने कार्यभार संभाला। उन्होंने वैश्वीकरण, विनिवेश और विदेशी पूंजी का विरोध किया और स्वदेशी पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे उनका वाजपेयी सरकार के साथ टकराव होता रहा।
मोदी का उदय और वर्तमान प्रभुत्व (2009-वर्तमान)
मोहन भागवत 2009 में संघ प्रमुख बने, और उनके कार्यकाल में नरेंद्र मोदी का उदय हुआ, जिससे देश की सत्ता पर भाजपा का पूर्ण प्रभुत्व स्थापित हुआ।
- विस्तार और अनुकूलन: भागवत के नेतृत्व में संघ की शाखाओं की संख्या 40 हजार से बढ़कर 83 हजार से भी अधिक हो गई। उन्होंने पुरुष-प्रधान संघ में महिलाओं की भागीदारी का आह्वान किया और जातिगत भेदभाव के विरुद्ध सामाजिक समरसता कार्यक्रम शुरू कराए।
- ऐतिहासिक लक्ष्य: इस दौरान कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाना और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण जैसे संगठन के कई ऐतिहासिक लक्ष्य पूरे हुए, जो सड़क पर आंदोलन के बजाय सरकारी कार्रवाई और अदालत के फैसले के जरिये हुए।
- मूल विश्वास: संघ आज भी अपने इस मूलभूत विश्वास को कभी नहीं छोड़ा है कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है और होना ही चाहिए, हालांकि भागवत ने अन्य विषयों पर अपने विचारों को संशोधित करने की तैयारी दिखाई है।
साधारण शुरुआत से लेकर, प्रतिबंधों और हाशिए पर धकेले जाने के दौर से होते हुए, आज आरएसएस सत्तारूढ़ व्यवस्था के वैचारिक केंद्र के रूप में भारत में सबसे सशक्त ताकतों में एक बन गया है।