सिनेमाघरों में रिलीज हुई काजोल अभिनीत हॉरर फिल्म ‘मां’ ने दर्शकों को डराने के साथ-साथ भावनात्मक रूप से भी जोड़ने का प्रयास किया है। यह फिल्म सिर्फ चीखने-चिल्लाने और अचानक डराने वाले दृश्यों (जम्प स्केयर) तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारतीय पौराणिक कथाओं और गहन मानवीय भावनाओं का एक अनूठा मिश्रण प्रस्तुत करती है।
कहानी और प्लॉट
फिल्म की कहानी एक ऐसी मां (काजोल) के इर्द-गर्द घूमती है, जो अपने बच्चे को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। जब उसके परिवार पर एक अलौकिक साया मंडराता है, तो उसे न केवल उस शक्ति का सामना करना पड़ता है, बल्कि अपनी आस्था और सदियों पुरानी किंवदंतियों में भी गहराई तक उतरना पड़ता है। फिल्म हॉरर के तत्वों के साथ-साथ परिवार, बलिदान और मातृत्व के मजबूत भावनात्मक धागों को बुनती है। निर्देशक ने पौराणिक संदर्भों का चतुराई से उपयोग किया है, जिससे कहानी को एक भारतीय पहचान मिलती है और यह केवल भूतों की कहानी न रहकर उससे कहीं अधिक बन जाती है।
अभिनय का लोहा मनवाया
काजोल ने एक बार फिर अपनी अभिनय क्षमता का लोहा मनवाया है। एक डरी हुई लेकिन दृढ़ मां के रूप में उनका प्रदर्शन फिल्म की जान है। भय, लाचारी और अदम्य साहस जैसे विभिन्न भावों को उन्होंने बखूबी पर्दे पर उतारा है। सहायक कलाकारों ने भी अपने किरदारों के साथ न्याय किया है, जिससे कहानी में विश्वसनीयता आती है।
निर्देशन और तकनीकी पक्ष
फिल्म का निर्देशन सधा हुआ है। निर्देशक ने हॉरर दृश्यों को प्रभावी बनाने के लिए अनावश्यक ग्राफिक दृश्यों के बजाय माहौल और ध्वनि के प्रयोग पर जोर दिया है। सिनेमैटोग्राफी और बैकग्राउंड स्कोर फिल्म के डरावने माहौल को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पौराणिक तत्वों का समावेश कहानी को एक नई परत देता है, जो इसे विशिष्ट बॉलीवुड हॉरर फिल्मों से अलग खड़ा करता है। हालांकि, कुछ जगहों पर पेसिंग थोड़ी धीमी लग सकती है, और कहानी कभी-कभी थोड़ी अनुमानित हो जाती है।
क्यों देखें ‘मां’?
अगर आप सिर्फ डरने के लिए हॉरर फिल्म देख रहे हैं तो ‘मां’ आपको कुछ हद तक संतुष्ट करेगी, लेकिन अगर आप एक ऐसी फिल्म देखना चाहते हैं जो डर के साथ-साथ भावनाओं को भी छूती हो और भारतीय संस्कृति व पौराणिक कथाओं में रुचि रखते हैं, तो ‘मां’ आपके लिए एक अच्छा विकल्प हो सकती है। यह फिल्म हॉरर शैली में एक ताजा और भावनात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।