उप्र के प्रयागराज में इस बार के महाकुंभ में शाही स्नान, पेशवाई जैसे शब्दों का उपयोग न तो बोलचाल में होगा और न ही लिखित में। अखाड़े उर्दू, अरबी-फारसी भाषा का प्रयोग करने से बचेंगे। श्रीनिरंजनी अखाड़ा ने अपने महामंडलेश्वर, महंतों सहित समस्त संतों को निर्देश दिया है कि वे बोल-चाल में हिंदी व संस्कृत भाषा का प्रयोग करें। जरूरत पडऩे पर अंग्रेजी बोल सकते हैं, लेकिन उर्दू, अरबी-फारसी का प्रयोग बिल्कुल न करें। महाकुंभ में जिन शिष्यों को आमंत्रित करें अथवा निमंत्रण कार्ड छपवाएं उसमें शाही स्नान की जगह राजसी स्नान व पेशवाई की जगह छावनी प्रवेश लिखा जाए। दूसरे अखाड़े भी शाही स्नान व पेशवाई शब्द का प्रयोग बंद कराने पर जोर दे रहे हैं।
बदलाव करने से पहले तह में जाना होगा
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी ने स्पष्ट किया है कि गुलामी के दौर में तमाम कुरीतियां सनातन धर्म से जुड़ी हैं। वे बोलचाल में भी शामिल हैं लेकिन अब समय आ गया है कि उन्हें धीरे-धीरे खत्म किया जाय। निरंजनी अखाड़े में उर्दू, फारसी, अरबी भाषा का प्रयोग करने पर रोक लगाई गई है। देववाणी संस्कृत अथवा हिंदी का प्रयोग अधिक किया जाए। जो महामंडलेश्वर व उनके अनुयायी विदेश में हैं वह अंग्रेजी भाषा का प्रयोग कर सकते हैं। आमंत्रण पत्रों, धार्मिक अनुष्ठान के बैनरों और पोस्टरों में उर्दू शब्द का प्रयोग न होने पाए। जूना अखाड़ा के मुख्य संरक्षक महंत हरि गिरि का कहना है कि अखाड़ों की परंपरा सदियों पुरानी है। बदलाव करने से पहले उसकी तह में जाना होगा। शाही स्नान व पेशवाई शब्द को लेकर भाषा विज्ञानियों से जानकारी ली जाएगी। फिर अखाड़ा परिषद की बैठक में उसे रखा जाएगा। 13 अखाड़ों के प्रतिनिधि मिलकर अंतिम निर्णय लेंगे।
पेशवाई व शाही स्नान शब्द का प्रयोग रुकना चाहिए
निर्मोही अनी अखाड़ा के अध्यक्ष श्रीमहंत राजेंद्र दास ने कहा कि गुलामी के कालखंड में जो कुरीतियां आई हैं, जिन्हें अब समाप्त करने की जरूरत है। तभी सनातन धर्म व भारत का स्वरूप निखरेगा। पेशवाई व शाही स्नान शब्द का प्रयोग रुकना चाहिए। इसके लिए समस्त अखाड़े आम सहमति बनाएं। हमारा अखाड़ा इसके प्रयोग पर रोक लगाने को तैयार है। इस मामले में जल्द सार्थक निर्णय लिया जाएगा।