दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण की भयावह स्थिति अब केवल स्वास्थ्य संकट नहीं, बल्कि एक सामाजिक और आर्थिक संकट का रूप ले चुकी है। एक हालिया सर्वेक्षण से पता चला है कि जहरीली हवा से परेशान होकर, लगभग 31 प्रतिशत निवासी सक्रिय रूप से शहर छोड़कर किसी दूसरी जगह जाने पर विचार कर रहे हैं। यह सर्वेक्षण Smitten और PulseAI द्वारा लगभग 4,000 लोगों के बीच किया गया है, जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण के व्यापक और गहरे प्रभाव को दर्शाता है।
स्वास्थ्य समस्याओं से बेहाल दिल्ली
सर्वेक्षण के अनुसार, दिल्ली-एनसीआर के 80 प्रतिशत से अधिक निवासी प्रदूषण के कारण लगातार स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं। सबसे प्रमुख शिकायतें हैं:
- पुरानी खांसी और थकान
- आंखों में जलन और पानी आना
- सांस लेने में तकलीफ
- 68.3 प्रतिशत लोगों ने पिछले एक साल में प्रदूषण से संबंधित चिकित्सा सहायता ली है, जो एक स्वास्थ्य आपातकाल की ओर इशारा करता है।
बढ़ता आर्थिक बोझ
प्रदूषण ने लोगों की जेब पर भी भारी बोझ डाला है। प्रदूषण से बचने और इलाज पर होने वाले खर्च के कारण निवासियों का आर्थिक दबाव काफी बढ़ गया है।
- दवा और इलाज: प्रदूषण जनित बीमारियों पर खर्च में वृद्धि हुई है।
- बचाव के उपाय: एयर प्यूरीफायर, N95 मास्क और होम क्लीनिक जैसे उपकरणों पर लोगों को भारी-भरकम राशि खर्च करनी पड़ रही है।
- जीडीपी पर नुकसान: आर्थिक विशेषज्ञों का अनुमान है कि प्रदूषण के कारण दिल्ली को सालाना अपनी सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 6 प्रतिशत तक नुकसान हो रहा है, जो अरबों डॉलर में है।
टूट रहा मोह: 31% लोग छोड़ने की तैयारी में
प्रदूषण की मार झेल रहे निवासियों में शहर के प्रति मोह कम हो रहा है। सर्वेक्षण के चौंकाने वाले आंकड़े बताते हैं कि लगभग 79.8 प्रतिशत लोग या तो शहर छोड़ने पर विचार कर रहे हैं या पहले ही स्थान छोड़ चुके हैं। 31 प्रतिशत लोग सक्रिय रूप से अन्य शहरों में जाने की योजना बना रहे हैं, जिससे साफ होता है कि यह संकट टैलेंट और कार्यबल के पलायन का कारण बन सकता है।
प्रशासन की कार्रवाई, लेकिन स्थिति ‘गंभीर’
प्रदूषण से निपटने के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) द्वारा ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) के तहत कई सख्त प्रतिबंध लागू किए गए हैं, जिनमें निर्माण कार्यों पर रोक और गैर-आवश्यक डीजल वाहनों पर प्रतिबंध शामिल हैं। हालांकि, हवा की गुणवत्ता (AQI) लगातार ‘बहुत खराब’ से ‘गंभीर’ श्रेणी में बनी हुई है।
विशेषज्ञों का मानना है कि पराली, वाहनों का उत्सर्जन, और औद्योगिक प्रदूषण जैसे कारकों से निपटने के लिए दीर्घकालिक और वैज्ञानिक समाधानों पर जोर देने की आवश्यकता है, ताकि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को इस जहरीले संकट से बचाया जा सके।


