महाराष्ट्र में भले ही महायुति ने जबरदस्त बहुमत हासिल कर सत्ता में वापसी की है लेकिन राज्य में राजनीतिक उथलपुथल थमने का नाम ने नहीं दे रही है। 23 नवंबर को जैसे ही नतीजे आए तो यह स्पष्ट हो गया था कि भाजपा ने 132 सीटें जीत कर नया इतिहास रचा है और बहुत संभव है कि उसी की पार्टी का मुख्यमंत्री भी बनेगा, लेकिन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना इसे मानने को तैयार नहीं थी। खुद शिंदे ने कहा था कि ऐसा कोई फार्मूला तय नहीं हुआ है कि जिसकी ज्यादा सीटें उसका ही सीएम बनेगा। इसके बाद से दोनों पार्टियों में सीएम पद के लिए रस्साकशी शुरू हो गई। भाजपा जहां देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाने की वकालत करती नजर आई तो शिवसेना के नेता तर्क देने लगे कि यह जीत तो सीएम शिंदे की अगुवाई वाली सरकार की है, इसलिए चेहरा उन्हीं को होना चाहिए। बहरहाल शिंदे ने दो दिन बाद खुद सामने आकर कह दिया कि जो बीजेपी जो चाहेगी वही होगा, जो पीएम मोदी और अमित शाह कहेंगे, वह मैं करूंगा। इसके बाद लगा कि अब महाराष्ट्र में सरकार बन जाएगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पर्दे के पीछे और सामने खुलकर मंत्रिमंडल और महायुति के संयोजक सहित विधानसभा अध्यक्ष पद पर शिवसेना ने दावा ठोक दिया। बीजेपी भी इन शर्तों को मानने को तैयार नहीं थी। यही वजह है कि सीएम शिंदे नाराज होकर अपने गांव चले गए और सरकार की गठन पर सस्पेंस बन गया। लेकिन भाजपा ने भी 5 दिसंबर को सीएम के पद की शपथ की तारीख तय कर ली और समय भी बता दिया। लेकिन सवाल यह है कि सीएम कौन बनेगा। जिस तरह भाजपा का इतिहास रहा है उसे देखते हुए यह लगता है कि भाजपा यहां भी चौंका सकती है। हो सकता है देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री न बन पाएं। उनकी जगह पर कोई नया चेहरा लाकर सामने लाकर रख दिया जाए और उसकी ताजपोशी हो जाए।
खाली होगी राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी
भाजपा में अभी जेपी नड्डा केंद्रीय मंत्री हंै तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। ऐसे में भाजपा लोकसभा चुनाव के बाद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष की खोज में जुटी हुई है। जैसा कि यह तय है कि अध्यक्ष के पद पर आरएसएस की रजामंदी जरूरी है। जिस तरह के नतीजे लोकसभा में आए, उसे देखते हुए बीजेपी भी यह मान चुकी है कि उसके लिए आरएसएस के साथ कदमताल करना जरूरी है। ऐसे में अगर देवेंद्र फडणवीस को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाता है तो उनके लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने का मार्ग आसान हो सकता है। ऐसे में देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र की राजनीति से निकल कर दिल्ली की राजनीति में आ जाएंगे। कुछ ऐसा ही 2009 के बाद हुआ था जब आरएसएस ने स्पष्ट कह दिया था कि दिल्ली से कोई भी राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बनेगा। हुआ भी यही और नितिन गडकरी को प्रदेश की राजनीति से उठाकर दिल्ली की राजनीति में उतार दिया गया। गडकरी अब केंद्रीय मंत्री हैं और उनके कामों का लोहा हर कोई मानता है। ऐसी में गडकरी हों या फडणवसी दोनों की आरएसएस से नजदीकी रही है। अगर देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री नहीं बन पाए तो राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसा पद उनके लिए महत्वपूर्ण साबित होगा।
क्यों जरूरी हैं देवेंद्र फडणवीस
देवेंद्र फडणवीस दो बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं तो एक बार उप मुख्यमंत्री पद का जिम्मा संभाल चुके हैं। वे भाजपा के महाराष्ट्र प्रदेश इकाई के अध्यक्ष भी रहे हैं। उनकी शिवसेना, एनसीपी, उद्धव ठाकरे और शरद पवार से लेकर कई नेताओं से अच्छी ट्यूनिंग है। यही वजह है कि वह महाराष्ट्र की राजनीति को बारीकी से समझते हैं। उन्होंने शिवसेना और एनसीपी को दो फाड़ कर अजीत गुट को अपने साथ मिला दिया। शिवसेना और एनसीपी में फुट का फायदा भाजपा को हुआ और भाजपा ने अब तक की सबसे बंपर जीत दर्ज कर ली। ऐसे में महाराष्ट्र की राजनीति में देवेंद्र फडणवीस जरूरी हैं लेकिन यह बीजेपी है जो किसी भी तरह का निर्णय ले सकती है। जैसा कि 2023 में मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को हटाकर मोहन यादव को मुख्यमंत्री बना दिया। तब सभी इस फैसले से चौंक गए थे लेकिन भाजपा ने यह कर दिखाया और शिवराज को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह दे दी। ऐसे में हो सकता है कि महाराष्ट्र में भी कुछ उथल-पुथल हो जाए। बहरहाल कल तक का इंतजार करना होगा, जब भाजपा की बैठक होगी और उसमें विधायक दल का नेता चुना जाएगा।