झारखंड की राजनीति के ‘गुरुजी’ कहे जाने वाले शिबू सोरेन का राजनीतिक जीवन जितना संघर्षों से भरा रहा, उतना ही विवादों से भी जुड़ा रहा। उन्होंने अपना पूरा जीवन झारखंड राज्य के गठन के लिए समर्पित कर दिया, लेकिन इस यात्रा में उन्हें कई उतार-चढ़ावों और गंभीर आरोपों का सामना भी करना पड़ा।
झारखंड आंदोलन के नायक
शिबू सोरेन ने 1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की। उनका मुख्य उद्देश्य आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ना और एक अलग झारखंड राज्य की स्थापना करना था। उन्होंने ‘महाजनी प्रथा’ (कर्ज देने वाले साहूकारों) के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन चलाया और आदिवासियों को न्याय दिलाने की कोशिश की। उनके इस संघर्ष ने उन्हें आदिवासियों के बीच एक लोकप्रिय नेता बना दिया। उनके प्रयासों से 2000 में झारखंड राज्य का गठन हुआ।
विवादों से भरा करियर
जहां एक तरफ शिबू सोरेन को झारखंड आंदोलन के नायक के रूप में सम्मान मिला, वहीं उनका करियर कई विवादों से भी घिरा रहा। सबसे बड़ा विवाद 1993 का JMM घूसकांड था, जिसमें उन पर नरसिंह राव सरकार को बचाने के लिए सांसदों को घूस देने का आरोप लगा था। इस मामले में उन्हें जेल भी जाना पड़ा था, हालांकि बाद में उन्हें बरी कर दिया गया।
इसके अलावा, उन पर 1975 में चिरुडीह नरसंहार का भी आरोप लगा था। 2006 में उन्हें अपने निजी सचिव शशिनाथ झा की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने उन्हें बरी कर दिया था।
इन विवादों के बावजूद, शिबू सोरेन झारखंड की राजनीति के एक महत्वपूर्ण स्तंभ बने रहे। वह तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री बने और केंद्र में मंत्री भी रहे। उनका जीवन यह दर्शाता है कि कैसे एक राजनेता संघर्ष और विवादों के बीच भी अपनी पहचान कायम रख सकता है।