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    पीएम मोदी ने रामसेतु के किए दर्शन.. भगवान श्रीराम से जुड़ी यह है मान्यता

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी श्रीलंका के दौरे पर थे, जिसमें कई अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए। अपने दौरे से वापस आते समय उन्होंने एक वीडियो एक्स पर पोस्ट किया है। इसमें उन्होंने लिखा कि रामनवमी के पावन अवसर पर श्रीलंका से वापस आते समय आकाश से रामसेतु के दिव्य दर्शन हुए। ईश्वरीय संयोग से मैं जिस समय रामसेतु के दर्शन कर रहा था। उन्होंने कहा कि उसी समय मुझे अयोध्या में रामलला के सूर्य तिलक के दर्शन का भी सौभाग्य मिला। मेरी प्रार्थना है कि हम सभी पर प्रभु श्रीराम की कृपा बनी रहे।

    रामसेतु को लेकर कई मान्यताएं

    रामसेतु भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित रामेश्वरम द्वीप (तमिलनाडु) और श्रीलंका के उत्तर-पश्चिमी तट पर स्थित मन्नार द्वीप के बीच चूना पत्थर के शैलों की एक श्रृंखला है। हिंदू धर्म में रामसेतु का एक महत्वपूर्ण स्थान है। रामायण के अनुसार, भगवान राम ने अपनी पत्नी माता सीता को लंका के राक्षस राजा रावण के चंगुल से छुड़ाने के लिए वानर सेना की मदद से इस पुल का निर्माण किया था। नल नामक वानर ने इस पुल के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसलिए इसे नल सेतु भी कहा जाता है। वहीं कुछ इस्लामी मान्यताओं के अनुसार आदम (पहले मानव) ने स्वर्ग से निष्कासित होने के बाद श्रीलंका में स्थित आदम शिखर तक पहुंचने के लिए इस पुल का इस्तेमाल किया था, इसलिए इसे आदम का पुल कहा जाता है।

    पैदल चला जा सकता था

    रामसेतु कभी भारत और श्रीलंका के बीच एक भूभाग था। विभिन्न अध्ययनों के अनुसार यह संरचना प्राकृतिक रूप से बनी है, जिसमें चूना पत्थर के टीले, प्रवाल भित्तियाँ और रेत के टीले शामिल हैं। माना जाता है कि लगभग 7,000 से 18,000 साल पहले रामेश्वरम और तलाईमन्नार द्वीप पानी से ऊपर थे। समुद्र के स्तर में परिवर्तन के कारण यह भूभाग धीरे-धीरे जलमग्न हो गया और शैलों की एक श्रृंखला के रूप में दिखाई देने लगा। कुछ वैज्ञानिक अध्ययनों में यह भी दावा किया गया है कि रामसेतु लगभग 500-600 साल पहले तक पूरी तरह से सूखा था और इस पर पैदल चला जा सकता था, लेकिन बाद में प्राकृतिक आपदाओं के कारण यह समुद्र में डूब गया।

    सरकार ने राम को काल्पनिक बताया था

    ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, 15वीं शताब्दी तक रामसेतु पर कुछ स्थानों पर पैदल चलना संभव था। 1480 ईस्वी में एक चक्रवात के कारण यह कई स्थानों पर टूट गया। ब्रिटिश काल में और स्वतंत्रता के बाद भी, इस क्षेत्र में जहाजों की आवाजाही के लिए एक नहर बनाने के कई प्रस्ताव आए, जिसे सेतुसमुद्रम परियोजना कहा गया। हालांकि धार्मिक और पर्यावरणीय कारणों से इस परियोजना का विरोध हुआ। तब यूपीए सरकार ने राम को काल्पनिक बताया था, जिस पर काफी हंगामा हुआ था।

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