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    पाक के परमाणु ठिकाने हो जाते तबाह; इंदिरा गांधी ने नहीं दी थी मंजूरी? पूर्व CIA अधिकारी का दावा

    अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए के पूर्व अधिकारी रिचर्ड बार्लो ने एक बड़ा खुलासा करते हुए कहा है कि 1980 के दशक में भारत और इस्राइल ने पाकिस्तान के कहूटा स्थित परमाणु संयंत्र पर हवाई हमले की संयुक्त योजना बनाई थी। हालांकि, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस हमले के प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी थी।

    हमले से असहमत थीं इंदिरा गांधी

    रिचर्ड बार्लो ने न्यूज एजेंसी ‘एएनआई’ से बातचीत में इस बात पर अफसोस व्यक्त किया और इसे शर्म की बात बताया।उन्होंने कहा कि यह अफसोसजनक है कि इंदिरा गांधी ने हमले की मंजूरी नहीं दी, क्योंकि अगर यह हमला हुआ होता तो कई समस्याएं सुलझ सकती थीं। डिक्लासिफाइड रिपोर्ट्स के अनुसार, दोनों देशों ने पाकिस्तान के कहूटा संयंत्र को निशाना बनाने की योजना बनाई थी, जहां यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम चल रहा था। यह एक प्री-एम्प्टिव स्ट्राइक (पूर्व-निवारक हमला) की रणनीति थी।

    कहूटा संयंत्र: पाकिस्तान की परमाणु नींव

    • कहूटा प्लांट को पाकिस्तान के परमाणु हथियार कार्यक्रम का मुख्य केंद्र माना जाता था, जिसकी निगरानी डॉ. ए.क्यू. खान करते थे। इसी संयंत्र के माध्यम से पाकिस्तान ने आगे चलकर 1998 में अपने पहले परमाणु परीक्षण किए और परमाणु ताकत की नींव रखी।

    अमेरिका की भूमिका और रीगन का विरोध

    बार्लो ने बताया कि उस समय अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रॉनल्ड रीगन किसी भी ऐसे हमले का विरोध करते। रीगन का विरोध इसलिए था क्योंकि यह हमला अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ चल रहे अमेरिकी मिशन (मुजाहिदीन को मदद) को बाधित कर सकता था। बार्लो के अनुसार, पाकिस्तान ने अमेरिका की इस निर्भरता का फायदा उठाया। पाकिस्तान के परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व प्रमुख मुनीर अहमद खान ने अमेरिकी सांसदों को चेतावनी दी थी कि अगर वाशिंगटन सहायता रोकेगा, तो अफगान युद्ध में सहयोग बंद कर दिया जाएगा। बार्लो ने इस रणनीति को ब्लैकमेल जैसा बताया।

    पाकिस्तान-ईरान परमाणु संबंध

    बार्लो ने अपने कार्यकाल के दौरान परमाणु हथियारों के प्रसार की गतिविधियों की जांच की थी। उन्होंने पाकिस्तान के गुप्त परमाणु सौदों पर वॉशिंगटन की प्रतिक्रिया को लापरवाह बताया। बार्लो ने दावा किया कि ईरान की गैस सेंट्रीफ्यूज विकास में प्रगति सीधे अब्दुल कादिर खान के नेटवर्क द्वारा प्रदान की गई तकनीक से जुड़ी थी। उन्होंने कहा कि ईरान कभी भी पाकिस्तान की मदद के बिना गैस सेंट्रीफ्यूज नहीं बना सकता था। हालांकि ईरान ने बाद में अपने दम पर प्रगति की, लेकिन उनके कार्यक्रम की नींव पाकिस्तान की मदद पर बनी थी।

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