अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से पाकिस्तान को मिली नवीनतम वित्तीय सहायता को लेकर कई अपडेट सामने आए हैं, जिसमें ऋण की शर्तों पर विशेष ध्यान दिया गया है। भारत ने लगातार यह चिंता जताई है कि पाकिस्तान IMF से मिले पैसों का दुरुपयोग हथियार खरीदने और आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए कर सकता है। इसी के चलते IMF पर पाकिस्तान को दी जाने वाली सहायता पर कड़ी शर्तें लगाने का दबाव बढ़ गया है।
हथियार खरीद पर अप्रत्यक्ष प्रतिबंध:
हालांकि, IMF अपने ऋण समझौतों में सीधे तौर पर यह शर्त नहीं लगाता कि देश हथियार नहीं खरीद सकते, लेकिन उसकी शर्तों का अप्रत्यक्ष प्रभाव यह होता है कि प्राप्त धन का उपयोग सैन्य उद्देश्यों के लिए नहीं किया जा सकता। IMF का मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों की आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करना और गरीबी उन्मूलन व विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करना है।
पाकिस्तान को दिए गए ऋण पैकेज के साथ IMF ने कई सख्त शर्तें लगाई हैं। इनमें मुख्य रूप से सरकारी खर्चों में कटौती, राजस्व बढ़ाना, बिजली बिलों पर सरचार्ज वसूलना, कृषि आयकर लागू करना और करदाताओं की पहचान कर उनसे टैक्स वसूलना शामिल है। इन शर्तों का सीधा संबंध पाकिस्तान की आर्थिक स्थिरता और राजकोषीय अनुशासन से है।
भारत की चिंताएं और IMF का रुख:
- भारत ने IMF से पाकिस्तान को ऋण देने का विरोध किया था, यह तर्क देते हुए कि पाकिस्तान को जब भी IMF से ऋण मिलता है, वह हथियारों की खरीद बढ़ा देता है। भारत ने यह भी बताया कि सीमा पर तनाव के समय पाकिस्तान को वित्तीय सहायता देना गलत था।
- हालांकि, IMF ने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा कि पाकिस्तान ने सभी आवश्यक शर्तें पूरी कर ली हैं और सुधारों में प्रगति दिखाई है। IMF के अनुसार, सभी बेलआउट पैकेज सीधे केंद्रीय बैंक के भंडार में जाते हैं और इनका उपयोग सरकारी बजट के लिए नहीं किया जाता। हालांकि, केंद्रीय बैंक से सरकार को उधार देने की कोई सीमा नहीं है, जिससे यह संभावना बनी रहती है कि यह पैसा अप्रत्यक्ष रूप से सैन्य खर्चों को प्रभावित कर सकता है।
- IMF की शर्तें पाकिस्तान को सीधे हथियार खरीदने से तो नहीं रोकतीं, लेकिन वे पाकिस्तान के वित्तीय संसाधनों पर सख्त नियंत्रण स्थापित करती हैं, जिससे सैन्य खर्चों के लिए धन की उपलब्धता सीमित हो जाती है। यह एक ऐसा कदम है जिससे भारत की चिंताएं काफी हद तक कम हो सकती हैं।