सिंधु जल आयोग के पूर्व आयुक्त और भारत सरकार के सलाहकार प्रदीप कुमार सक्सेना ने एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि भारत जल्द ही सिंधु बेसिन पर इतने बांध बना लेगा कि पाकिस्तान को सबक सिखाया जा सके। सक्सेना के अनुसार, भारत ने इस विषय पर छह साल तक गहन अध्ययन किया है और 2022-23 में सरकार को एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी है।
उन्होंने बताया कि भारत के पास वियना कन्वेंशन के अनुच्छेद 62 के तहत संधि को रद्द करने का अधिकार है और जब भी जरूरत पड़ेगी, इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि “हमने पूरी तैयारी कर रखी है। अगले तीन-चार सालों में सभी प्रस्तावित बांध बनकर तैयार हो जाएंगे।”
क्या है सिंधु जल संधि?
सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुई एक ऐतिहासिक संधि है, जिसके तहत दोनों देशों के बीच सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के जल का बंटवारा होता है। इस संधि के तहत, पूर्वी नदियां (रावी, ब्यास और सतलुज) का पानी भारत को मिला, जबकि पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम और चिनाब) का पानी पाकिस्तान को मिला। हालांकि, संधि भारत को पश्चिमी नदियों के पानी का उपयोग कृषि और पनबिजली उत्पादन जैसे गैर-उपभोक्ता उपयोगों के लिए करने की अनुमति देती है।
पाकिस्तान पर क्यों बनाया जा रहा दबाव?
भारत का यह कदम पाकिस्तान द्वारा सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देने और भारत विरोधी गतिविधियों को जारी रखने के कारण उठाया जा रहा है। भारत का मानना है कि पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए जल एक महत्वपूर्ण हथियार हो सकता है। नए बांधों के निर्माण से भारत अपनी जल भंडारण क्षमता बढ़ाएगा, जिससे वह पाकिस्तान को दी जाने वाली पानी की मात्रा को नियंत्रित कर सकेगा। यह एक बड़ा रणनीतिक कदम माना जा रहा है।