भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ चलाए गए “ऑपरेशन सिंदूर” को लेकर संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा, में 28 और 29 जुलाई को कुल 32 घंटे की मैराथन चर्चा होगी। प्रत्येक सदन को इस संवेदनशील विषय पर अपनी बात रखने के लिए 16-16 घंटे का समय आवंटित किया गया है। यह निर्णय संसदीय कार्य मामलों की समिति की एक उच्च-स्तरीय बैठक में लिया गया, जिसमें सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
“ऑपरेशन सिंदूर” का उद्देश्य:
ऑपरेशन 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में शुरू किया गया था। इस अभियान के तहत भारतीय सशस्त्र बलों ने 7 से 10 मई 2025 के बीच पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में स्थित 9 आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया। भारतीय सेना ने लश्कर-ए-तैयबा और टीआरएफ (TRF) जैसे आतंकी संगठनों के 9 ठिकानों को ध्वस्त किया, जिनमें मुरीदके, कोटली, मुजफ्फराबाद और बहावलपुर जैसे स्थान शामिल थे। कुछ सैटेलाइट तस्वीरों के अनुसार, भारत ने इस दौरान पाकिस्तान के परमाणु ठिकाने किराना हिल्स को भी निशाना बनाया था। हालांकि, भारतीय सेना ने किराना हिल्स पर हमले की बात से इनकार किया था, पर विशेषज्ञों का मानना है कि यह पाकिस्तान के लिए एक चेतावनी जैसा था, जिससे उनके परमाणु हथियारों को कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ।
इस ऑपरेशन के दौरान पाकिस्तान ने भी जवाबी कार्रवाई की और भारत के ऊपर 840 मिसाइलें दागीं, लेकिन इनमें से एक भी निशाने पर नहीं लगी। भारतीय वायुसेना ने अधिकांश मिसाइलों को हवा में ही मार गिराया, जबकि कुछ खुले मैदानों में गिरीं। इस घटना ने पाकिस्तानी हथियारों की “पोल” खोल दी।
विपक्ष की भूमिका और पारदर्शिता की मांग:
विपक्षी दलों ने इस ऑपरेशन के कुछ पहलुओं पर सरकार से विस्तृत स्पष्टीकरण की मांग की है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया है कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच “सीजफायर” (युद्धविराम) कराया था। विपक्ष ने इस बात पर जोर दिया है कि सरकार को राष्ट्र के सामने पूरी सच्चाई रखनी चाहिए।
राजनीतिक और सुरक्षा महत्व:
यह चर्चा ऐसे समय में हो रही है जब भारत-पाकिस्तान संबंधों में तनाव बना हुआ है और सीमा पर सुरक्षा चुनौतियां लगातार बनी हुई हैं। सरकार इस ऑपरेशन की सफलता पर जोर देकर अपनी दृढ़ता प्रदर्शित करना चाहेगी, वहीं विपक्ष राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर सरकार को जवाबदेह ठहराने का प्रयास करेगा।
यह देखना दिलचस्प होगा कि 28 और 29 जुलाई को होने वाली इस लंबी चर्चा में “ऑपरेशन सिंदूर” के बारे में क्या नई जानकारियां सामने आती हैं और इसका भारतीय कूटनीति तथा सुरक्षा नीति पर क्या प्रभाव पड़ता है।