जम्मू-कश्मीर में ‘ऑपरेशन महादेव’ की बड़ी सफलता ने केंद्र सरकार को निश्चित तौर पर राहत की सांस दी है। सोमवार, 28 जुलाई 2025 को पहलगाम हमले के मास्टरमाइंड हाशिम मूसा सहित तीन पाकिस्तानी आतंकियों के मारे जाने की खबर ऐसे समय में आई है, जब संसद का मानसून सत्र गर्म है और विपक्षी दल लगातार पहलगाम हमले व ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर सरकार को घेर रहे थे। अब सवाल उठता है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी और अन्य विपक्षी दल इस नई स्थिति में क्या रणनीति अपनाएंगे।
लोकसभा में आज सुबह से ही पहलगाम हमले पर चल रही चर्चा के दौरान कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने सरकार की विदेश नीति, खुफिया विफलता और पाकिस्तान के प्रति सरकार के रुख पर तीखे सवाल उठाए थे। राहुल गांधी और गौरव गोगोई जैसे नेताओं ने सदन में हंगामा भी किया था, जिस पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को उन्हें कड़ी फटकार लगानी पड़ी थी। समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने तो यहां तक कह दिया था कि “विदेश नीति हमारी असफल रही है।”
‘ऑपरेशन महादेव’ की सफलता की खबर से सरकार को विपक्ष के इन हमलों का प्रभावी जवाब देने का एक मजबूत हथियार मिल गया है। रक्षा और गृह मंत्रालय के सूत्र पहले ही संकेत दे चुके थे कि सरकार इन सफलताओं को अपनी आतंकवाद विरोधी नीति की मजबूती के प्रमाण के रूप में पेश करेगी। यह निश्चित रूप से सरकार को संसद के भीतर और बाहर दोनों जगह एक मजबूत स्थिति में ला खड़ा करेगा।
अब राहुल गांधी और विपक्षी दलों के सामने एक दुविधा है। एक ओर, राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद के खिलाफ सफल सैन्य कार्रवाई का समर्थन करना एक आम राजनीतिक परिपाटी है। ऐसे में वे इस ऑपरेशन की सफलता पर सीधे तौर पर सवाल उठाने से बच सकते हैं। दूसरी ओर वे अभी भी पहलगाम हमले की मूल खुफिया विफलता या ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दीर्घकालिक प्रभावों जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरने की कोशिश कर सकते हैं। वे यह तर्क दे सकते हैं कि एक ऑपरेशन की सफलता से पूरी समस्या का समाधान नहीं होता।
यह भी संभावना है कि विपक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर एकजुटता दिखाने का प्रयास करे, लेकिन साथ ही सरकार से यह भी मांग करे कि वह भविष्य में ऐसे हमलों को रोकने के लिए अधिक ठोस कदम उठाए। कांग्रेस सांसद शशि थरूर का ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर बयान देने से इनकार करना भी दर्शाता है कि विपक्ष के भीतर इस मुद्दे पर पूरी तरह से एक राय नहीं है। कुल मिलाकर, यह देखना दिलचस्प होगा कि राहुल गांधी और विपक्षी दल इस बदली हुई स्थिति में अपनी राजनीतिक रणनीति को कैसे समायोजित करते हैं।