ओडिशा के बालासोर में 2 जून 2023 को भीषण ट्रेन हादसे से भी रेलवे ने सबक नहीं लिया है। तब हादसे में करीब 296 लोग मारे गए थे और 1200 से ज्यादा घायल हुए थे। एक साल बाद फिर उसी तरह का हादसा पश्चिम बंगाल में हुआ, जब कंचनजंगा एक्सप्रेस जो अगरतला से सियालदह जा रही थी, उसे पीछे से मालगाड़ी ने सिग्नल को तोड़ते हुए टक्कर मारी है। ट्रेन के पीछे का गार्ड का डिब्बा, दो पार्सेल वैन और जनरल डिब्बे क्षतिग्रस्त हुए हैं। इस हादसे में 8 की मौत हुई है, जबकि लगभग 50 लोग घायल हैं, जिनका इलाज चल रहा है। इस बीच रेल मंत्री द्वारा घोषित किए गए कवच सिस्टम पर भी सवाल उठ रहे हैं। तब उन्होंने शेखी बघारी थी कि ऐसा हादसा दोबारा नहीं होगा।
यह है कवच सिस्टम और उसकी चुनौतियां
-कवच टक्कर-रोधी विशेषताओं के साथ एक कैब सिग्नलिंग ट्रेन नियंत्रण प्रणाली है जिसे अनुसंधान डिज़ाइन और मानक संगठन द्वारा तीन भारतीय अनुबंधकारों के सहयोग से तैयार किया गया है।
-यह सेफ्टी इंटीग्रिटी लेवल-4 मानकों का पालन करता है और मौजूदा सिग्नलिंग प्रणाली पर एक सतर्क निगरानीकत्र्ता के रूप में कार्य करता है।
-यह सिस्टम रेड सिग्नल’ के निकट पहुँचने पर यह लोको पायलट को सचेत करता है और सिग्नल को पार करने से रोकने के लिये आवश्यकता पडऩे पर स्वचालित ब्रेक लगाता है।
-नेटवर्क मॉनिटर सिस्टम के माध्यम से इस प्रणाली में ट्रेन की गतिविधियों की केंद्रीकृत लाइव निगरानी की सुविधा का भी दावा किया गया है।
-तेलंगाना के सिकंदराबाद में भारतीय रेलवे सिग्नल इंजीनियरिंग और दूरसंचार संस्थान कवच के लिये उत्कृष्टता केंद्र हैं।
-इस सिस्टम में लगभग 1,500 किलोमीटर की सीमित कवरेज और 50 लाख रुपए प्रति किलोमीटर की स्थापना लागत है जो कि सबसे प्रमुख चुनौती है।
-68,000 किलोमीटर के रेल नेटवर्क में इसे पूरी तरह से लागू करना चुनौतीपूर्ण है।
-भारतीय रेलवे ने सिग्नलिंग और टेलीकॉम बजट खंड के तहत 4,000 करोड़ रुपए का बजट रखा है। -कवच को लागू करने के लिये राष्ट्रीय रेल संरक्षण कोष के तहत 2,000 करोड़ रुपए शामिल हैं।