पाकिस्तान में एक बार फिर सैन्य शासन की आहट सुनाई दे रही है। रिपोर्ट्स के अनुसार, पाकिस्तान के नए फील्ड मार्शल बने सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर, जिन्हें “मुल्ला मुनीर” के नाम से भी जाना जाता है, अब राष्ट्रपति बनने की तैयारी में हैं। पाकिस्तान के राजनीतिक इतिहास को देखते हुए यह कोई नई बात नहीं है, जहां देश के लगभग आधे समय तक सैन्य शासन रहा है।
मुल्ला मुनीर का प्लान
असीम मुनीर, जो 2022 से पाकिस्तानी सेना के 11वें सेनाध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं, को देश की खुफिया एजेंसी आईएसआई का भी प्रमुख रहने का अनुभव है। उन्हें पाकिस्तान में वास्तविक निर्णय लेने वाले सैन्य नेतृत्व के रूप में देखा जा रहा है। खबरें हैं कि वह वर्तमान राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को हटाकर खुद राष्ट्रपति का पद हथिया सकते हैं। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इन अटकलों को खारिज किया है, लेकिन पाकिस्तान की सच्चाई जानते हुए यह बयान सिर्फ एक औपचारिक चुप्पी हो सकती है।
मुनीर हाल ही में फील्ड मार्शल बने हैं, और यह माना जा रहा है कि उन्होंने दबाव बनाकर यह पद हासिल किया है। फील्ड मार्शल अयूब खान के बाद वह दूसरे ऐसे सैन्य प्रमुख हैं, जिन्होंने यह पद हासिल किया है, और अयूब खान देश के पहले तानाशाह भी बने थे। ऐसे में पाकिस्तान में चर्चा तेज है कि क्या मुनीर अगले अयूब खान होंगे। उनकी हालिया अकेले विदेश यात्राएं भी उनके बढ़ते प्रभाव की ओर इशारा करती हैं।
भारत के लिए क्यों चिंता का विषय?
जनरल मुनीर का सत्ता पर काबिज होने का यह संभावित कदम भारत के लिए कई मायनों में चिंता का विषय है। पाकिस्तान में जनरल मुनीर की बढ़ती शक्ति और उनके सत्ता हथियाने की अटकलें भारत के लिए एक गंभीर चुनौती पेश करती हैं, जिससे क्षेत्र में अस्थिरता और सुरक्षा जोखिम बढ़ सकते हैं।
- अस्थिरता और कट्टरता: सैन्य शासन अक्सर पाकिस्तान में आंतरिक अस्थिरता और कट्टरपंथ को बढ़ावा देता है। मुनीर को “मुल्ला” नाम उनके धार्मिक झुकाव के कारण दिया गया है, और उनकी सेना को इस्लामीकरण करने की कोशिशें भारत के लिए सीमा पार से अधिक कट्टरपंथी और आक्रामक नीतियों का संकेत हो सकती हैं।
- भारत विरोधी रुख: जनरल मुनीर पहले भी कई मौकों पर भारत के खिलाफ तीखे बयान दे चुके हैं और कश्मीर मुद्दे पर भड़काऊ बयानबाजी करते रहे हैं। उनका सत्ता में आना भारत विरोधी भावनाओं को और भड़का सकता है, जिससे सीमा पर तनाव बढ़ सकता है।
- आतंकवाद को बढ़ावा: सैन्य नेतृत्व के तहत, पाकिस्तान में आतंकवादी समूहों को अधिक समर्थन मिलने की आशंका बढ़ जाती है, जिससे भारत में सीमा पार आतंकवाद का खतरा बढ़ सकता है।
- लोकतांत्रिक प्रक्रिया का कमजोर होना: पाकिस्तान में सेना का राजनीति पर दबदबा हमेशा से रहा है, और मुनीर का यह कदम लोकतांत्रिक संस्थानों को और कमजोर करेगा, जिससे भारत-पाक संबंधों में स्थिरता और विश्वास की कमी बनी रहेगी।