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    मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस: सुप्रीम कोर्ट ने फैसले पर लगाई रोक, जानें बेंच ने क्या दिया आदेश

    2006 के मुंबई लोकल ट्रेन बम धमाकों से जुड़े एक अहम मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया गया था। बॉम्बे हाई कोर्ट ने 21 जुलाई को अपने फैसले में कहा था कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत पेश करने में विफल रहा और उन्हें संदेह का लाभ देते हुए बरी किया जाता है। इस फैसले के बाद, सोमवार (21 जुलाई) शाम तक नागपुर सेंट्रल जेल से दो आरोपियों को रिहा भी कर दिया गया था।

    महाराष्ट्र सरकार ने बॉम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिस पर गुरुवार को सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की बेंच ने महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने का आदेश दिया।

    हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जिन आरोपियों को बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के बाद रिहा कर दिया गया है, उन्हें वापस जेल लाने का कोई सवाल नहीं है। बेंच ने कहा, “हमें सूचित किया गया है कि सभी प्रतिवादियों को रिहा कर दिया गया है और उन्हें वापस जेल में लाने का कोई सवाल ही नहीं है।”
    कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि बॉम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले को अन्य लंबित मामलों में एक मिसाल (precedent) के तौर पर नहीं माना जाएगा।

    सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए। उन्होंने बेंच से आग्रह किया था कि हाई कोर्ट के फैसले में की गई कुछ टिप्पणियां मकोका (MCOCA) के तहत लंबित अन्य मामलों को प्रभावित कर सकती हैं, इसलिए फैसले पर रोक लगाई जाए। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी दलीलों को स्वीकार करते हुए इस हद तक फैसले पर रोक लगाई।
    सुप्रीम कोर्ट ने सभी 12 आरोपियों को नोटिस जारी किया है और चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में 187 लोगों की मौत हो गई थी और 800 से अधिक लोग घायल हुए थे। एक स्पेशल मकोका कोर्ट ने अक्टूबर 2015 में 12 आरोपियों को दोषी ठहराया था, जिनमें से पांच को मौत की सजा और सात को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी, लेकिन बॉम्बे हाई कोर्ट ने उन सभी को बरी कर दिया था।

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