पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में स्थित अयोध्या पहाड़ियों के बीच बसे एक छोटे से गांव, जिलिंगसेरेंग, में मालती मुर्मू नामक एक साधारण गृहिणी ने असाधारण कार्य किया है। उन्होंने अपने मिट्टी के घर को ही एक स्कूल में बदल दिया है और बिना किसी वेतन के 45 बच्चों को शिक्षा दे रही हैं। उनकी यह कहानी शिक्षा के प्रति उनके निस्वार्थ समर्पण और दृढ़ संकल्प को दर्शाती है।
शिक्षा की अलख जगाई
मालती ने देखा कि उनके गांव के अधिकांश बच्चे गरीबी के कारण स्कूल नहीं जा पा रहे थे। उनके माता-पिता फीस भरने या स्कूल का खर्च उठाने में असमर्थ थे। इस स्थिति को देखकर मालती ने फैसला किया कि वह खुद ही इन बच्चों को पढ़ाएंगी। उन्होंने अपनी बचत से बच्चों के लिए किताबें और अन्य शिक्षण सामग्री खरीदी और अपनी ‘उम्मीद की पाठशाला’ शुरू की।
चुनौतियों का सामना
मालती का परिवार भी आर्थिक रूप से कमजोर है, और उनके पति दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते हैं। इसके बावजूद, उन्होंने अपने सपनों को साकार करने के लिए हार नहीं मानी। शुरुआत में, गांव वालों को उनकी इस पहल पर यकीन नहीं था, लेकिन जब उन्होंने मालती के समर्पण को देखा तो वे भी उनका साथ देने लगे। आज, मालती की पाठशाला में 45 से अधिक बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं।
मालती की कहानी यह साबित करती है कि अगर इंसान के अंदर कुछ करने का जुनून हो तो कोई भी बाधा उसे रोक नहीं सकती। उनका यह प्रयास समाज के लिए एक प्रेरणा है और यह दिखाता है कि शिक्षा का अधिकार हर बच्चे तक पहुंचना चाहिए, चाहे वे कहीं भी रहते हों। उनकी यह सफलता की कहानी कई लोगों को अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित कर रही है।