भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों पुरानी सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को ‘सस्पेंड’ (अस्थगित) करने के बाद मोदी सरकार ने एक और बड़ा रणनीतिक कदम उठाया है। केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में चिनाब नदी पर दुलहस्ती स्टेज-II (Dulhasti Stage-II) जलविद्युत परियोजना को पर्यावरण मंजूरी दे दी है। इस फैसले को पाकिस्तान के लिए एक कड़े संदेश के तौर पर देखा जा रहा है।
दुलहस्ती-II प्रोजेक्ट: मुख्य जानकारी
पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति (EAC) ने करीब 3,200 करोड़ रुपये की लागत वाली इस परियोजना को हरी झंडी दी है। यह परियोजना 260 मेगावाट (MW) अतिरिक्त बिजली का उत्पादन करेगी। यह एक ‘रन-ऑफ-द-रिवर’ प्रोजेक्ट है, जो दुलहस्ती स्टेज-I (390 मेगावाट) का विस्तार है। इसमें स्टेज-I से पानी को डायवर्ट कर बिजली बनाई जाएगी। 23 अप्रैल 2025 को संधि के निलंबन के बाद यह दूसरी बड़ी परियोजना है जिसे मंजूरी मिली है (इससे पहले सावलकोट प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई थी)।
पाकिस्तान के लिए ‘टेंशन’ की वजह
सिंधु जल संधि (1960) के तहत ‘पश्चिमी नदियों’ (सिंधु, झेलम और चिनाब) के पानी पर पाकिस्तान का मुख्य हक था। हालांकि, भारत को इन नदियों पर बिजली परियोजनाएं बनाने का अधिकार था, लेकिन पाकिस्तान अक्सर तकनीकी आपत्तियां जताकर इन्हें रोकता रहा है।
अब स्थिति क्यों बदली है?
- संधि का निलंबन: पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने इस संधि को ‘In Abeyance’ (स्थगित) कर दिया है। इसका मतलब है कि भारत अब संधि की उन सीमाओं से बंधा नहीं है जो उसे पानी के अधिकतम उपयोग से रोकती थीं।
- तेजी से विकास: भारत अब चिनाब बेसिन में सावलकोट, रतले, बुरसर, पाकल दुल और किरू जैसी परियोजनाओं को युद्धस्तर पर आगे बढ़ा रहा है।
- पानी का नियंत्रण: इन प्रोजेक्ट्स के पूरा होने से भारत के पास चिनाब के पानी के बहाव को नियंत्रित करने की बेहतर क्षमता होगी, जो पाकिस्तान की कृषि और ऊर्जा सुरक्षा के लिए सीधा खतरा है।
भारत का नया प्लान: ‘मिशन इंडस’
भारत सरकार का लक्ष्य जम्मू-कश्मीर में पश्चिमी नदियों की लगभग 20,000 मेगावाट की कुल क्षमता का दोहन करना है, जिसमें से अब तक केवल 3,500 मेगावाट का ही उपयोग हो पा रहा था। ‘दुलहस्ती-II’ को मंजूरी देना इसी व्यापक रणनीति का हिस्सा है।
विशेषज्ञों का मत: “भारत अब ‘पानी को हथियार’ (Weaponising Water) के रूप में इस्तेमाल नहीं कर रहा, बल्कि अपनी कानूनी क्षमता और संप्रभुता का उपयोग कर रहा है ताकि सीमा पार आतंकवाद का मुकाबला किया जा सके।”
पाकिस्तान ने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र (UN) और अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों में ले जाने की धमकी दी है, लेकिन भारत का रुख स्पष्ट है—”आतंक और बातचीत (या सहयोग) साथ-साथ नहीं चल सकते।”


