लद्दाख में पिछले कई दिनों से चल रहा शांतिपूर्ण आंदोलन बुधवार को अचानक हिंसक हो गया। छठी अनुसूची में शामिल करने और राज्य के दर्जे की मांगों को लेकर हो रहे इस प्रदर्शन में चार लोगों की मौत हो गई और 80 लोग घायल हुए, जिनमें 40 पुलिस और सीआरपीएफ जवान शामिल हैं। इस हिंसा ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि जब सरकार और आंदोलनकारी बातचीत के लिए तैयार थे, तब किसने और क्यों इस शांतिपूर्ण माहौल को बिगाड़ा?
बातचीत से पहले भड़की हिंसा
लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) के प्रतिनिधियों की केंद्रीय गृह मंत्रालय के साथ 6 अक्टूबर को बैठक तय हो चुकी थी। पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक के अनुरोध पर गृह मंत्रालय ने इसे 25 सितंबर तक जल्दी करने का न्योता भी दिया था। ऐसे में, यह सवाल उठ रहा है कि जब मांगों के शांतिपूर्ण हल के लिए रास्ता खुल रहा था, तब अचानक हिंसा क्यों भड़की? स्थानीय लोगों के अनुसार, यह लद्दाख जैसे शांत क्षेत्र को अस्थिर करने की एक सुनियोजित साजिश हो सकती है, जिसमें बाहरी तत्वों का हाथ होने की आशंका है।
कौन थे वो लोग जो नहीं चाहते थे शांति?
स्थानीय लेह निवासी ताशी के अनुसार, प्रदर्शनकारी युवा शांतिपूर्ण तरीके से धरना दे रहे थे। उनका मानना है कि कुछ ऐसे लोगों ने माहौल खराब किया जो नहीं चाहते थे कि यह मसला शांति से हल हो। हिंसा के बाद, भाजपा ने कांग्रेस पर उकसाने का आरोप लगाया है, जबकि कांग्रेस नेता फुटसोग स्टेंजिन त्सेपाग पर भड़काऊ भाषण देने के लिए मामला दर्ज किया गया है। भाजपा के आरोपों पर सोनम वांगचुक ने कहा कि लद्दाख में कांग्रेस का इतना प्रभाव नहीं है कि वह 5,000 युवाओं को सड़क पर उतार सके।
हिंसा और आरोप-प्रत्यारोप
हिंसा की शुरुआत तब हुई जब कुछ युवाओं का एक समूह शहीदी पार्क में शांतिपूर्ण धरने पर पहुँचा और उन्होंने तोड़फोड़ शुरू कर दी। इसके बाद, सीआरपीएफ के जवानों ने आँसू गैस के गोले दागे और प्रदर्शनकारियों ने पथराव किया। गुस्साए युवाओं ने भाजपा के प्रदेश कार्यालय में तोड़फोड़ कर आग लगा दी और वहाँ खड़े वाहनों को भी फूंक दिया। इस दौरान, पुलिस फायरिंग में चार प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई।
हिंसक घटनाओं के बाद, प्रशासन ने लेह में कर्फ्यू लगा दिया है और इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं। सोनम वांगचुक ने हिंसा से दुखी होकर अपना अनशन खत्म कर दिया है। यह घटना दर्शाती है कि लद्दाख की मांगों को लेकर चल रहा आंदोलन अब राजनीतिक रंग ले चुका है, जिसमें पार्टियाँ एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रही हैं।