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    जर्सी, छिछोरे, दंगल, इंग्लिश मीडियम.. ये फिल्में हैं पिता के बलिदान, प्रेम, संघर्ष की दास्तान

    फादर्स डे के इस खास मौके पर हम उन फिल्मों की बात करते हैं जिन्होंने पर्दे पर पिता के संघर्ष, त्याग और अपने बच्चों के सपनों को पूरा करने की अटूट इच्छाशक्ति को बखूबी दर्शाया है। ये फिल्में सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि पिता-बच्चों के रिश्ते की गहराई और उनके बीच के भावनात्मक बंधन को भी उजागर करती हैं। ये सभी फिल्में पिता के बलिदान, प्रेम और अपने बच्चों के लिए अथक प्रयासों की दास्तान हैं। फादर्स डे पर ये फिल्में हमें याद दिलाती हैं कि हमारे पिता हमारे जीवन के असली नायक हैं, जो बिना किसी शर्त के हमें प्यार करते हैं और हमारा समर्थन करते हैं।

    ‘जर्सी’: शाहिद कपूर अभिनीत यह फिल्म एक ऐसे पिता की कहानी है जो अपने बेटे की इच्छा पूरी करने के लिए क्रिकेट के मैदान में वापसी करता है। नौकरी छूटने के बाद भी वह अपने बेटे को जर्सी दिलाने और उसे एक बेहतर भविष्य देने के लिए हर मुश्किल का सामना करता है। यह फिल्म दिखाती है कि कैसे एक पिता अपने बच्चे की खुशी के लिए किसी भी हद तक जा सकता है, भले ही इसके लिए उसे अपने गौरव को दांव पर लगाना पड़े।

    ‘छिछोरे’: यह फिल्म इंजीनियरिंग के छात्रों के जीवन पर आधारित है, लेकिन इसके केंद्र में एक पिता और बेटे का रिश्ता है। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक पिता अपने बेटे को जीवन में आने वाली असफलताओं से लड़ने और जीतने के लिए प्रेरित करता है। यह फिल्म इस बात पर जोर देती है कि परिणाम से ज्यादा महत्वपूर्ण संघर्ष और अनुभव होते हैं।

    ‘दंगल’: आमिर खान अभिनीत फिल्म “दंगल” हरियाणा के एक पूर्व पहलवान महावीर सिंह फोगट के जीवन पर आधारित है। इस फिल्म में, आमिर खान ने महावीर सिंह फोगट का किरदार निभाया है, जो अपनी बेटियों गीता और बबीता को पहलवान बनने के लिए प्रशिक्षित करते हैं। अपनी बेटियों को विश्व स्तरीय पहलवान बनाने का सपना देखता है। समाज और रूढ़ियों से लड़कर वह अपनी बेटियों को प्रशिक्षण देता है और उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुंचाता है। यह फिल्म पिता के विश्वास, दृढ़ संकल्प और बेटियों के लिए अदम्य साहस की मिसाल है।

    ‘इंग्लिश मीडियम’: इरफान खान की यह मार्मिक फिल्म एक ऐसे पिता की कहानी है जो अपनी बेटी को लंदन के एक अच्छे कॉलेज में पढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास करता है। भाषा और सांस्कृतिक बाधाओं के बावजूद, वह अपनी बेटी के सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष करता है। यह फिल्म दिखाती है कि पिता अपने बच्चों की शिक्षा और भविष्य के लिए कितनी दूर जा सकते हैं, भले ही इसके लिए उन्हें अपनी सुख-सुविधाओं का त्याग करना पड़े।

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