राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस के अवसर पर, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने एक बड़ी घोषणा की है। इसरो ने पहली बार भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) का मॉडल पेश किया है, जिसे 2035 तक पूरी तरह से तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है। यह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक मील का पत्थर साबित होगा।
इस महत्वपूर्ण मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा कि भारत अब सिर्फ चंद्रमा पर पहुंचने तक सीमित नहीं है, बल्कि अंतरिक्ष में अपना खुद का स्थायी ठिकाना बनाने जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस अंतरिक्ष स्टेशन का पहला मॉड्यूल 2028 तक अंतरिक्ष में स्थापित कर दिया जाएगा। यह स्टेशन पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक पर आधारित होगा, जिससे भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो जाएगा जिनके पास अपनी खुद की अंतरिक्ष प्रयोगशाला है।
इसरो द्वारा जारी किया गया BAS-01 मॉड्यूल का मॉडल 10 टन वजन का होगा और इसे पृथ्वी से 450 किलोमीटर ऊपर निचली कक्षा में स्थापित किया जाएगा। इस स्टेशन में स्वदेशी रूप से विकसित पर्यावरण नियंत्रण प्रणाली, डॉकिंग सिस्टम और स्वचालित हैच सिस्टम जैसी अत्याधुनिक तकनीकें होंगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपने संबोधन में भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के भविष्य पर बात की। उन्होंने कहा कि अनंत अंतरिक्ष हमें सिखाता है कि कोई अंतिम पड़ाव नहीं होता। इसी सोच के साथ, नीतिगत स्तर पर सुधार, प्रदर्शन और परिवर्तन (Reform, Perform, and Transform) की नीति अपनाई जा रही है।
प्रधानमंत्री ने भारतीय वैज्ञानिकों की सराहना करते हुए कहा कि उनकी मेहनत से जल्द ही गगनयान मिशन पूरा होगा। इसके बाद, भारत अपना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन भी बनाएगा। उन्होंने कहा कि अभी तक भारत की पहुंच चंद्रमा और मंगल तक है, लेकिन अब हमें गहरे अंतरिक्ष में उन रहस्यों को खोजना है जो मानवता के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हैं।
पीएम मोदी का यह बयान अंतरिक्ष में भारत की बढ़ती महत्वाकांक्षा को दर्शाता है। यह दिखाता है कि भारत अब सिर्फ मिशन पूरे करने पर नहीं, बल्कि अंतरिक्ष में एक स्थायी और मजबूत उपस्थिति बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में अंतरिक्ष क्षेत्र में आत्मनिर्भरता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि “आर्यभट्ट से गगनयान तक” की थीम भारत के अतीत के आत्मविश्वास और भविष्य के संकल्प को दर्शाती है। यह कदम न केवल भारत की तकनीकी क्षमता को बढ़ाएगा, बल्कि अंतरिक्ष अनुसंधान और विज्ञान में नई ऊंचाइयों को छूने का मार्ग भी प्रशस्त करेगा।