कच्चातिवु द्वीप के मामले में भाजपा ने मोर्चा खोल लिया है। कल पीएम नरेंद्र मोदी का ट्वीट आया और फिर मेरठ से उन्होंने तीखे सवाल भी पूछे। आज विदेश मंत्री एस जयशंकर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कांग्रेस पर सवालों की बौछार की। अब सवाल यह उठता है कि आखिर 50 साल बाद यह मुद्दा क्यों उठा। वैसे तो भाजपा कह रही है कि आरटीआई से इसकी जानकारी हाथ लगी है, लेकिन इसकी दूसरी वजह भी हो सकता है। दरअसल भाजपा तमिलनाडु पर ज्यादा फोकस किए हुए है। उसका लग रहा है कि यहां लोकसभा चुनाव में उसकी सीटें बढ़ सकती हैं। ऐसे में यह मुद्दा उसके लिए ज्यादा मुफीद है। इस मुद्दे के जरिए वह तमिलनाडु के मछुआरों के हित और तमिलनाडु की अस्मिता से जोडऩा चाहती है। वह बताना चाहती है कि यह द्वीप तमिलनाडु का हिस्सा था, लेकिन कांग्रेस ने इसे श्रीलंका को दे दिया। अब देखना होगा कि भाजपा का यह दांव चल पाता है या नहीं।
6 लाख तमिलों के हित में था फैसला
कांग्रेस नेता और राज्य सभा सांसद पी चिदंबरम ने कहा कि यह बेतुका आरोप है। यह समझौता 1974 और 1976 में हुआ था। पीएम मोदी एक हालिया आरटीआई का जिक्र कर रहे हैं। उन्हें 27 जनवरी 2015 के आरटीआई जवाब का जिक्र करना चाहिए, जब विदेश मंत्री एस जयशंकर विदेश सचिव थे। उस उत्तर में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि बातचीत के बाद यह द्वीप अंतरराष्ट्रीय सीमा के श्रीलंकाई हिस्से में है। इंदिरा गांधी ने इसलिए स्वीकार किया कि यह श्रीलंका का है क्योंकि श्रीलंका में 6 लाख तमिल पीडि़त थे। उन्हें शरणार्थी के रूप में भारत आना पड़ा। इस समझौते के परिणामस्वरूप 6 लाख तमिल भारत आए और वे यहां सभी मानवाधिकारों के साथ स्वतंत्रता का आनंद ले रहे हैं।