अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल सैयद असीम मुनीर के बीच हालिया मुलाकात ने ईरान में बेचैनी बढ़ा दी है। इस हाई-प्रोफाइल बैठक से तेहरान में गहरी चिंताएं पैदा हो गई हैं, जहां शिया नेतृत्व पाकिस्तान से एक बड़े खतरे की आशंका देख रहा है। इस डर का सीधा कनेक्शन मध्य-पूर्व में अमेरिकी सामरिक हितों और संभावित रूप से पाकिस्तान में अमेरिकी खुफिया गतिविधियों से जुड़ा है। ट्रंप ने कहा है कि वह दो सप्ताह के भीतर इजरायल-ईरान युद्ध में शामिल होने को लेकर फैसला लेंगे। रावलपिंडी में पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय से कुछ दूरी पर स्थित नूर खान एयर बेस के बारे में कहा जाता है कि यह सीक्रेट तौर पर अमेरिका के नियंत्रण में है।
ईरान की चिंता का एक प्रमुख कारण पाकिस्तान में संभावित अमेरिकी “सीक्रेट बेस” या खुफिया सुविधाओं की उपस्थिति की अफवाहें हैं। हालांकि पाकिस्तान या अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर ऐसे किसी बेस की पुष्टि नहीं की है, लेकिन ऐसी खबरें अक्सर सामने आती रही हैं। ईरान को आशंका है कि यदि ऐसे बेस मौजूद हैं, तो उनका उपयोग उसकी गतिविधियों पर नज़र रखने या भविष्य में उसके खिलाफ सैन्य अभियानों के लिए किया जा सकता है। पाकिस्तान का भू-रणनीतिक स्थान, जो ईरान से सटा हुआ है, इस डर को और बढ़ा देता है।
इसके अतिरिक्त, पाकिस्तान और ईरान के बीच सीमा पर तनाव है। ऐसे में अमेरिका और पाकिस्तान के बीच किसी भी प्रकार का गहरा सैन्य या खुफिया सहयोग ईरान को अपने लिए एक सीधा खतरा महसूस कराता है। ईरान, जो क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में अपने प्रभाव को बनाए रखने की कोशिश कर रहा है, इस बढ़ती हुई अमेरिकी-पाकिस्तानी सांठगांठ को अपनी सुरक्षा के लिए चुनौती के रूप में देख रहा है।