जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर (पीके) ने बुधवार को घोषणा की कि वह आगामी बिहार विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि अगर उनकी पार्टी जीतती है, तो राष्ट्रीय राजनीति पर इसका व्यापक असर होगा।
चुनाव न लड़ने का फैसला और चुनावी दावे
- चुनाव न लड़ने का कारण: प्रशांत किशोर ने कहा कि यह फैसला पार्टी के व्यापक हित में लिया गया है। अगर वह चुनाव लड़ते, तो उनका ध्यान संगठनात्मक कार्यों से भटक जाता। इसलिए, तेजस्वी यादव के खिलाफ राघोपुर से भी किसी और उम्मीदवार को उतारा गया है।
- जीत या हार का दावा: पीके ने अपनी पार्टी की चुनावी संभावनाओं पर कहा कि “हम या तो भारी जीत दर्ज करेंगे या पूरी तरह हार जाएंगे।”
- हार का पैमाना: उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर जन सुराज को 150 से कम सीटें मिलती हैं, तो वह इसे अपनी नज़र में हार मानेंगे। उन्होंने कहा कि 120 या 130 सीटें भी हार होंगी।
- त्रिशंकु जनादेश: उन्होंने त्रिशंकु विधानसभा की किसी भी संभावना से साफ इनकार किया और कहा कि अगर वे अच्छा प्रदर्शन करते हैं, तो उन्हें बिहार को देश के 10 सबसे विकसित राज्यों में शामिल करने का जनादेश मिलेगा।
- सड़क और समाज की राजनीति: अगर जनता ने पर्याप्त भरोसा नहीं जताया, तो पार्टी सड़क और समाज की राजनीति को आगे बढ़ाती रहेगी।
सरकार बनने पर वादे
प्रशांत किशोर ने बिहार को माफियाओं (भू-माफिया, बालू माफिया) से मुक्त करने और छह बड़े वादे पूरे करने की बात कही। इनमें सबसे महत्वपूर्ण वादा है:
- भ्रष्टों पर कार्रवाई: सरकार बनने के एक महीने के भीतर एक कानून बनाया जाएगा, जिसके तहत 100 सबसे भ्रष्ट नेताओं और अफसरों की पहचान की जाएगी।
- अवैध संपत्ति जब्त: इन भ्रष्ट लोगों पर मुकदमा चलाया जाएगा और उनकी अवैध संपत्ति जब्त करके राज्य के खजाने में जमा की जाएगी, जिसका इस्तेमाल बिहार के विकास के लिए किया जाएगा।
- शराबबंदी नीति: फर्जी शराबबंदी नीति को खत्म करना भी उनके वादों में शामिल है।
एनडीए पर हमला
पीके ने दावा किया कि बिहार में सत्ताधारी एनडीए (NDA) की हार तय है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब सत्ता में वापस नहीं लौटेंगे। उन्होंने तर्क दिया कि भाजपा नेतृत्व वाले गठबंधन में सीटों और उम्मीदवारों को लेकर जो असमंजस की स्थिति है, उससे साफ है कि हालात उनके पक्ष में नहीं हैं। पीके ने दोहराया कि एनडीए की विदाई तय है।उन्होंने पिछली बार चिराग पासवान की बगावत का भी जिक्र किया, जिसके कारण जदयू की सीटें घटकर 43 पर आ गई थीं।