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    अगर पति आवारा है, कंडोम ही सहारा है..! समस्तीपुर में छात्राओं से लगवाए ‘आपत्तिजनक’ नारे

    बिहार के समस्तीपुर में विश्व एड्स दिवस (World AIDS Day) के अवसर पर आयोजित एक जागरूकता रैली उस समय विवादों में घिर गई, जब रैली में शामिल जीएनएम (GNM) की छात्राओं से एड्स की रोकथाम से संबंधित कुछ आपत्तिजनक और द्विअर्थी नारे लगवाए गए। इन नारों का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद, कई लोगों ने इसका कड़ा विरोध किया है।


    विवादित नारे और रैली का उद्देश्य

    यह जागरूकता रैली समस्तीपुर के सरकारी नर्सिंग कॉलेज की छात्राओं द्वारा निकाली गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य एड्स (AIDS) और एचआईवी (HIV) की रोकथाम के बारे में जनता को जागरूक करना था। हालांकि, इस्तेमाल किए गए नारे, विशेष रूप से एक नारा, सामाजिक बहस का विषय बन गया।

    विवादित नारा: “अगर पति आवारा है, कंडोम ही सहारा है।” ‘परदेस नहीं जाना बलम जी, एड्स न लाना बलम जी’

    • छात्राओं ने यह नारा भी लगाया: “जब तक बेटा ब्याह नहीं, तब तक कंडोम ही रहा।” (हालांकि, कुछ स्रोतों के अनुसार, यह नारा “जब तक बेटा ब्याह नहीं, तब तक शिक्षा ही सहारा” था।)
    • यह रैली मुख्य रूप से असुरक्षित यौन संबंध और समाज में अविवाहित जोड़ों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए आयोजित की गई थी, लेकिन नारों की भाषा ने इसे विवादित बना दिया।

    सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया

    जैसे ही यह वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर वायरल हुआ, लोगों ने इन नारों की भाषा पर तुरंत आपत्ति जताई। प्रतिक्रियाएँ दो प्रमुख ध्रुवों में बँटी हुई थीं:

    निंदा और विरोधसमर्थन और बचाव
    कुछ यूज़र्स ने इसे ‘मर्दों का अपमान’ बताया और कहा कि यह नारा पुरुषों को ‘आवारा’ के रूप में चित्रित कर रहा है, जो लैंगिक पूर्वाग्रह को दर्शाता है।कुछ लोगों ने इसे “सत्य, लेकिन कड़वा” बताया और कहा कि एड्स जैसे गंभीर मुद्दे पर सीधे और प्रभावी जागरूकता के लिए ऐसे नारों की जरूरत है।
    घटिया और असभ्य: कई लोगों ने नारों की भाषा को अति-सीधा और घटिया बताया, खासकर इसे छात्राओं से लगवाए जाने पर आपत्ति जताई गई।सुरक्षा का संदेश: कुछ यूज़र्स ने बचाव करते हुए कहा कि नारा स्पष्ट रूप से सुरक्षित यौन संबंध और कंडोम के उपयोग पर जोर देता है, जो एड्स की रोकथाम का मुख्य तरीका है।

    प्रशासन की ओर से कार्रवाई की मांग

    इस विवाद के बाद, स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं और कुछ राजनीतिक दलों ने जिला प्रशासन से इस मामले में हस्तक्षेप करने और ऐसे अशोभनीय नारों के उपयोग की अनुमति देने वाले अधिकारियों के खिलाफ जांच और कार्रवाई की मांग की है। हालांकि, स्वास्थ्य विभाग ने अभी तक इस पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है।

    यह घटना दिखाती है कि सामाजिक जागरूकता के लिए संदेश को प्रभावी बनाने और सामाजिक संवेदनशीलता बनाए रखने के बीच संतुलन बनाना कितना मुश्किल हो सकता है।

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