उत्तराखंड में अक्सर ग्लेशियर फटने की घटनाएं होती रहती हैं। इससे पहले जब भी ग्लेशियर फटे तो इसका सीधा असर जल विद्युत परियोजनाओं यानि कि हाईड्रोलिक प्रोजेक्ट पर पड़ा है। इससे सरकार को भारी क्षति का सामना करना पड़ा, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। किसी भी ग्लेशियर की झील फटने से जल विद्युत परियोजनाओं को नुकसान नहीं होगा। नई परियोजनाएं स्थापित करने से पहले पूरे क्षेत्र में ग्लेशियरों का प्रभाव देखा जाएगा। इसी हिसाब से हाइड्रो प्रोजेक्ट में सुरक्षा के जरूरी इंतजाम किए जाएंगे।
ध्वस्त हो गया था पावर प्रोजेक्ट
इससे पहले फरवरी 2021 में चमोली की ऋषिगंगा वैली में ग्लेशियर फटने से आई आपदा में तपोवन स्थित पावर प्रोजेक्ट पूरी तरह से बर्बाद हो गया था। एनटीपीसी की परियोजना को भी इससे काफी नुकसान हुआ था। यही नहीं 72 मजदूरों की मौत भी हो गई थी। इससे पहले 2013 में केदारनाथ में भी ग्लेशियर की झील फटने की वजह से भीषण आपदा आई थी। इन भीषण आपदाओं को देखते हुए सरकार ने हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की सुरक्षा को लेकर नए प्रावधान किए हैं।
प्रोजेक्ट के इर्द-गिर्द कितने ग्लेशियर की झीलें
नया प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले यह देखा जाएगा कि प्रोजेक्ट के इर्द-गिर्द कितने ग्लेशियर की झीलें हैं। अगर वह फटती हैं तो उनसे निकलने वाला पानी किस तरह से पावर प्रोजेक्ट के माध्यम से आगे बढ़ाया जा सकता है, ताकि प्रोजेक्ट को नुकसान न हो और प्रवाह भी बना रहे। पावर प्रोजेक्ट का सीसमिक डिजाइन भी बनाया जा रहा है। आईआईटी रुडक़ी की मदद से ये काम किया जा रहा है। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की मदद से लैंडस्लाइड जोनेशन मैप भी बनाया जा रहा है, ताकि यह स्पष्ट रहे कि उस जल विद्युत परियोजना के आसपास कितनी जगह भू-स्खलन का खतरा हो सकता है। हर प्रोजेक्ट का डिजास्टर मैनेजमेंट प्लान, अर्ली वार्निंग सिस्टम, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी अनिवार्य किया गया है।