प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में मॉरीशस के प्रधानमंत्री डॉ. नवीनचंद्र रामगुलाम से मुलाकात की। इस दौरान दोनों नेताओं के बीच प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता हुई, जिसके बाद भारत और मॉरीशस के बीच एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए।
चागोस समझौते पर बधाई
प्रधानमंत्री मोदी ने मॉरीशस के प्रधानमंत्री को चागोस समझौता संपन्न होने पर बधाई दी, और इसे मॉरीशस की संप्रभुता की एक ऐतिहासिक जीत बताया। उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा उपनिवेशवाद और मॉरीशस की संप्रभुता का पूर्ण समर्थन किया है। मोदी ने आगे कहा, “भारत, मॉरीशस के साथ दृढ़ता से खड़ा रहा है।”
द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा
दोनों प्रधानमंत्रियों ने द्विपक्षीय सहयोग के सभी पहलुओं की विस्तृत समीक्षा की और क्षेत्रीय व वैश्विक मुद्दों पर अपने विचार साझा किए। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि यह उनके लिए गर्व की बात है कि उन्हें अपने संसदीय क्षेत्र में मॉरीशस के प्रधानमंत्री का स्वागत करने का मौका मिला। उन्होंने काशी के सांस्कृतिक और सभ्यतागत महत्व पर जोर दिया। मोदी ने कहा कि सदियों पहले भारतीय संस्कृति मॉरीशस पहुंची और वहाँ की जीवन-पद्धति का हिस्सा बन गई। उन्होंने कहा कि भारत और मॉरीशस सिर्फ साझेदार नहीं हैं, बल्कि एक परिवार हैं। मोदी ने इस मुलाकात को एक आध्यात्मिक मिलन बताया।
चागोस समझौता ब्रिटेन और मॉरीशस के बीच हुआ एक ऐतिहासिक समझौता है, जिसमें ब्रिटेन ने चागोस द्वीपसमूह की संप्रभुता मॉरीशस को सौंपने पर सहमति व्यक्त की है। यह समझौता दशकों पुराने कानूनी और कूटनीतिक विवाद को खत्म करता है। यह विवाद तब शुरू हुआ था जब 1965 में मॉरीशस को स्वतंत्रता मिलने से पहले, ब्रिटेन ने चागोस द्वीप समूह को उससे अलग कर दिया था और इसे ब्रिटिश इंडियन ओशन टेरिटरी (BIOT) का हिस्सा बना दिया था। भारत ने इस पूरे मामले में मॉरीशस के दावे का समर्थन किया। भारत ने उपनिवेशवाद के खिलाफ अपने सिद्धांत और मॉरीशस के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों के आधार पर इस मुद्दे पर मॉरीशस का साथ दिया। भारत का मानना है कि यह समझौता अंतरराष्ट्रीय कानून और न्याय के अनुरूप है। यह समझौता हिंद महासागर में स्थिरता और सुरक्षा को मजबूत करने में मदद करेगा। भारत के समर्थन ने इस कूटनीतिक जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे यह दोनों देशों के लिए एक सकारात्मक कदम साबित हुआ है।