कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ गुजरात पुलिस द्वारा सोशल मीडिया पर ऐ खून के प्यासे बात सुनो… कविता पोस्ट करने पर दर्ज की गई एफआईआर को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विचारों और दृष्टिकोणों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बिना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत गरिमापूर्ण जीवन जीना असंभव है। एक स्वस्थ लोकतंत्र में किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा व्यक्त किए गए विचारों का विरोध दूसरे दृष्टिकोण को व्यक्त करके किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भले ही बड़ी संख्या में लोग दूसरे द्वारा व्यक्त किए गए विचारों को नापसंद करते हों, लेकिन व्यक्ति के विचार व्यक्त करने के अधिकार का सम्मान और संरक्षण किया जाना चाहिए। कविता, नाटक, फिल्म, व्यंग्य, कला सहित साहित्य मनुष्य के जीवन को अधिक सार्थक बनाता है।
इंस्टाग्राम पर वीडियो अपलोड किया था
कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी की कविता ऐ खून के प्यासे बात सुनो… ने खूब सुर्खियां बटोरी हैं। इमरान प्रतापगढ़ी ने एक शादी समारोह में शिरकत करने के बाद अपने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो अपलोड किया था। वीडियो के बैकग्राउंड में ऐ खून के प्यासे बात सुनो… कविता चल रही थी। कविता के इन शब्दों को आपत्तिजनक माना गया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दखल देते हुए कहा कि यह कविता अहिंसा की बात करती है। कोर्ट ने कहा कि इस कविता का धर्म से या किसी राष्ट्र-विरोधी गतिविधि से कोई लेना-देना नहीं है। यह कविता परोक्ष रूप से कहती है कि भले ही कोई हिंसा करे, लेकिन हम हिंसा नहीं करेंगे। यह कविता सिर्फ सही संदेश दे रही है और यह किसी समुदाय के खिलाफ नहीं है।
कविता के ये हैं बोल
ऐ खून के प्यासे बात सुनो,
गर जुल्म सहो तो प्यार से सहो,
गर इंसाफ की खातिर लडऩा हो,
तो प्यार से लडऩा सीखो तुम।