तालिबान ने ‘ग्रेटर अफगानिस्तान’ (बृहत्तर अफगानिस्तान) की अवधारणा को फिर से बल दिया है, जिसके चलते अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच दशकों पुराने सीमा विवाद में तनाव काफी बढ़ गया है। तालिबान शुरू से ही डूरंड लाइन को एक आधिकारिक अंतर्राष्ट्रीय सीमा के रूप में मान्यता नहीं देता है।
’ग्रेटर अफगानिस्तान’ की मांग क्या है?
- ’ग्रेटर अफगानिस्तान’ की अवधारणा के तहत, तालिबान पाकिस्तान के उन क्षेत्रों पर दावा करता है जो पश्तून बहुल हैं और ऐतिहासिक रूप से अफगानिस्तान से जुड़े रहे हैं।
- इनमें मुख्य रूप से पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के बड़े हिस्से, साथ ही गिलगित-बाल्टिस्तान और बलूचिस्तान के कुछ इलाके शामिल हैं।
- तालिबान का मानना है कि डूरंड लाइन, जिसे ब्रिटिश भारत ने 1893 में खींचा था, एक औपनिवेशिक विरासत है जिसने पश्तून समुदायों को विभाजित कर दिया।
तालिबान के मंत्री का बयान
तालिबान सरकार के एक मंत्री, नबी उमरी, ने इस दावे को दोहराते हुए एक सार्वजनिक बयान दिया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि “अपनी जमीन को वापस लेने का समय आ गया है” जो कथित तौर पर डूरंड लाइन के पार है। इस तरह के बयान पाकिस्तान में बेचैनी पैदा कर सकते हैं और दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा सकते हैं।
पाकिस्तान पर इसका संभावित असर
- सीमा संघर्ष: डूरंड लाइन पर दोनों पक्षों के बीच पहले ही कई बार झड़पें हो चुकी हैं, और ‘ग्रेटर अफगानिस्तान’ के दावे इन संघर्षों को और भड़का सकते हैं।
- आंतरिक अस्थिरता: पाकिस्तान के लिए यह दावा एक बड़ा आंतरिक मुद्दा बन सकता है, क्योंकि यह देश की क्षेत्रीय अखंडता को चुनौती देता है।
- टीटीपी का मुद्दा: पाकिस्तान का आरोप है कि तालिबान, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) जैसे आतंकवादी समूहों को पनाह देता है, जो पाकिस्तान में हमले करते हैं। तालिबान का क्षेत्रीय दावा इस तनाव को और जटिल बनाता है।
- कूटनीतिक तनाव: पाकिस्तान ने डूरंड लाइन को अंतर्राष्ट्रीय सीमा के रूप में मान्यता दी है और वह तालिबान के दावों को खारिज करता है, जिससे दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध निचले स्तर पर आ गए हैं।
अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण
डूरंड लाइन को अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच की आधिकारिक सीमा मानता है। हालांकि, अफगानिस्तान की किसी भी पिछली सरकार ने इसे कभी पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया, और तालिबान भी इसी नीति पर कायम है।
यह विवाद लंबे समय से दोनों देशों के बीच अविश्वास और अस्थिरता का एक प्रमुख कारण रहा है, जो अब तालिबान के सत्ता में आने के बाद एक नए और अधिक मुखर रूप में सामने आया है।


