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    गौरव आनंद ने जलकुंभी से बनाई साड़ियाँ.. अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग; यूरोप तक निर्यात

    जिस जलकुंभी को बरसों से तालाबों, नदियों और जलाशयों में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण माना जाता रहा है, उसी को झारखंड के जमशेदपुर के एक पर्यावरण इंजीनियर गौरव आनंद ने न केवल आय का जरिया बनाया है, बल्कि वैश्विक पहचान भी दिलाई है। गौरव की यह सफलता की कहानी दर्शाती है कि यदि दृष्टिकोण रचनात्मक हो, तो व्यर्थ समझी जाने वाली वस्तुएं भी कितनी मूल्यवान बन सकती हैं।

    गौरव आनंद ने जलकुंभी से मजबूत प्राकृतिक फाइबर निकालने की एक अनूठी तकनीक विकसित की है। यह फाइबर मजबूत और टिकाऊ होता है, जिसका उपयोग अब फैशन और हस्तशिल्प के क्षेत्र में किया जा रहा है।

    स्वर्णरेखा नदी से मिली प्रेरणा

    इस अभिनव विचार की शुरुआत कुछ साल पहले हुई, जब गौरव आनंद रांची में स्वर्णरेखा नदी की सफाई के काम में जुटे थे। नदी को प्रदूषित करने वाली जलकुंभी की भारी मात्रा को देखकर गौरव के मन में इसे नष्ट करने के बजाय, इसे उपयोगी सामग्री में बदलने का विचार आया। उन्होंने इस पर्यावरणीय समस्या को एक आर्थिक अवसर के रूप में देखा और इसके फाइबर की गुणवत्ता पर रिसर्च शुरू की। नदी की सफाई के दौरान जलकुंभी को सिर्फ एक समस्या मानने के बजाय, उन्होंने इसे ‘मूल्यवान सामग्री’ में बदल दिया।

    पर्यावरण संरक्षण के साथ महिला सशक्तिकरण

    गौरव आनंद की इस पहल ने दोहरी सफलता हासिल की है। एक ओर, यह जल निकायों को प्रदूषण मुक्त करने में मदद कर रहा है और पानी की गुणवत्ता में सुधार ला रहा है, वहीं दूसरी ओर, इसने स्थानीय महिला समूहों के लिए रोजगार के नए अवसर खोले हैं।

    ये महिला समूह गौरव द्वारा तैयार किए गए प्राकृतिक फाइबर का उपयोग करके आकर्षक फ्यूजन सूती साड़ियां, टिकाऊ चटाई और विभिन्न प्रकार के सुंदर हस्तशिल्प के सामान तैयार करते हैं। यह कार्य पूरी तरह से पर्यावरण अनुकूल होने के साथ-साथ स्थानीय आजीविका और महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है।

    वैश्विक पहचान: यूरोप तक निर्यात

    गौरव आनंद की इन साड़ियों की गुणवत्ता, मजबूती और पर्यावरण हितैषी होने के कारण अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी अपनी जगह बना चुकी हैं। आज ये खास साड़ियाँ न केवल भारत में पसंद की जा रही हैं, बल्कि इनकी माँग यूरोप के बाजारों तक पहुँच गई है और ये वहाँ नियमित रूप से निर्यात हो रही हैं।

    उत्पाद की विशिष्टता यह है कि एक साड़ी बनाने में 85% जलकुंभी फाइबर और केवल 15% कपास का इस्तेमाल होता है, जिससे यह बहुत ही टिकाऊ और प्राकृतिक बन जाती है। सबसे खास बात यह है कि पर्यावरण को बचाने वाली और हाथ से बुनी गई इस एक साड़ी को तीन दिन में पूरी तरह से हाथ से तैयार किया जाता है।

    यह जलकुंभी की चुनौती को हरित क्रांति के एक नए अध्याय में बदल देने का उत्कृष्ट उदाहरण है, जो एक पर्यावरण इंजीनियर के नवाचार और दृढ़ संकल्प के बल पर स्थानीय कला और वैश्विक बाजार के बीच एक मजबूत सेतु का निर्माण करता है।

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