आज, 26 जुलाई, 2025 को हम 1999 के कारगिल युद्ध में भारत की शानदार जीत का 26वां सालगिरह मना रहे हैं। यह दिन भारतीय सेना के अदम्य साहस, शौर्य और बलिदान को याद करने का दिन है, जिसने विपरीत परिस्थितियों में भी दुश्मनों को धूल चटाई। यह युद्ध लगभग 84 दिनों तक चला और भारतीय सेना ने “ऑपरेशन विजय” के तहत पाकिस्तानी घुसपैठियों को करारा जवाब दिया।
कैसे हुई शुरुआत: मई 1999 की घुसपैठ
मई 1999 की शुरुआत में जम्मू-कश्मीर के कारगिल जिले में स्थानीय चरवाहों ने भारतीय सीमा में कुछ संदिग्ध गतिविधियों की सूचना दी। शुरुआती जाँच में सामने आया कि पाकिस्तानी सेना के नियमित सैनिक और प्रशिक्षित घुसपैठिये, जो खुद को मुजाहिदीन बता रहे थे, नियंत्रण रेखा (LoC) पार करके भारत के ऊंचे और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण पहाड़ी ठिकानों पर कब्जा कर चुके थे। इन घुसपैठियों का मुख्य मकसद लेह-लद्दाख को शेष भारत से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 1 (NH-1) को नियंत्रित करना था, जिससे सियाचिन ग्लेशियर में भारतीय सेना की आपूर्ति बाधित हो सके।
5 मई को, भारतीय सेना ने घुसपैठ की पुष्टि के लिए एक पेट्रोलिंग टीम भेजी, जिस पर घुसपैठियों ने हमला कर दिया। इस हमले में 5 भारतीय जवान शहीद हो गए और उनके शवों के साथ बर्बरता की गई, जिससे पूरे देश में आक्रोश फैल गया। 9 मई को, पाकिस्तानी सेना ने कारगिल में भारतीय गोला-बारूद डिपो पर भारी गोलाबारी की, जिससे व्यापक नुकसान हुआ।
ऑपरेशन विजय और हवाई हमला
घुसपैठ की गंभीरता को समझते हुए, भारतीय सेना ने “ऑपरेशन विजय” शुरू किया। यह एक बड़ा सैन्य अभियान था, जिसका उद्देश्य कब्जे वाले सभी भारतीय क्षेत्रों से घुसपैठियों को खदेड़ना था। भारतीय सेना को दुर्गम पहाड़ी इलाकों, अत्यधिक ठंड और ऑक्सीजन की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, क्योंकि दुश्मन ऊँचाई पर बैठकर गोलीबारी कर रहा था।
26 मई 1999 को, भारतीय वायुसेना ने “ऑपरेशन सफेद सागर” लॉन्च किया। लड़ाकू विमानों, जैसे मिग-21, मिग-27 और मिराज-2000, को 16,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर दुश्मन के ठिकानों पर बमबारी करने और आपूर्ति मार्गों को बाधित करने के लिए तैनात किया गया। हालांकि, शुरुआती दिनों में भारत को कुछ नुकसान भी उठाना पड़ा।
महत्वपूर्ण चोटियों पर कब्जा और अंतरराष्ट्रीय दबाव
जून महीने में युद्ध और तेज हो गया। भारतीय सेना ने द्रास, काकसर, बटालिक और मुशकोह सेक्टरों में भीषण लड़ाई लड़ी। टोलोलिंग, पॉइंट 5140 और टाइगर हिल जैसी रणनीतिक चोटियों को वापस जीतना एक बड़ी चुनौती थी। भारतीय सैनिकों ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए एक-एक करके इन ऊंचाइयों पर कब्जा करना शुरू किया। कैप्टन विक्रम बत्रा, लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे, ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव और राइफलमैन संजय कुमार जैसे अनेक वीर सपूतों ने अपनी जान की बाजी लगाकर देश का गौरव बढ़ाया।
जैसे-जैसे भारतीय सेना आगे बढ़ती गई, पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ने लगा। संयुक्त राज्य अमेरिका सहित कई देशों ने पाकिस्तान से अपनी सेना वापस बुलाने का आह्वान किया। 4 जुलाई को टाइगर हिल पर भारत की जीत एक निर्णायक मोड़ साबित हुई, जिसने पाकिस्तान को झुकने पर मजबूर कर दिया।
विजय और उसके बाद
11 जुलाई को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अमेरिका के दबाव और युद्ध में हार को देखते हुए एकतरफा युद्धविराम की घोषणा की और अपनी सेना को वापस बुलाने पर सहमत हुए। हालांकि पाकिस्तानी सेना के कुछ हिस्सों ने लड़ाई जारी रखने की कोशिश की, लेकिन भारतीय सेना ने उन्हें खदेड़ना जारी रखा।
26 जुलाई 1999 को, भारतीय सेना ने घोषणा की कि कारगिल क्षेत्र के सभी कब्जे वाले ठिकानों को पाकिस्तानी घुसपैठियों से मुक्त कर दिया गया है। भारत ने “ऑपरेशन विजय” में शानदार जीत हासिल की। इस युद्ध में भारत के 527 से अधिक जवान शहीद हुए और 1300 से अधिक घायल हुए, लेकिन उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा में कोई कसर नहीं छोड़ी।
कारगिल युद्ध ने भारत की सैन्य शक्ति, एकजुटता और राष्ट्रीय संकल्प को प्रदर्शित किया। यह भारतीय सेना के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय है, जो हर साल 26 जुलाई को ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप में हमें हमारे वीर जवानों के सर्वोच्च बलिदान की याद दिलाता है। यह युद्ध पहला ऐसा था जिसे भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने बड़े पैमाने पर कवर किया, जिसने पूरे देश को भावनात्मक रूप से एकजुट किया।