मध्य पूर्व में 12 दिनों तक चले ईरान और इजरायल के बीच के सीधे सैन्य संघर्ष पर अब विराम लग गया है, लेकिन इसके गहरे निहितार्थ अभी भी बहस का विषय बने हुए हैं। इस संक्षिप्त मगर तीव्र युद्ध ने दोनों पक्षों को भारी नुकसान पहुंचाया और क्षेत्रीय शक्ति संतुलन पर सवाल खड़े किए। अब सवाल यह है कि कौन जीता, कौन हारा, और क्या तेहरान ने नैरेटिव वार जीत ली, जबकि नेतन्याहू जीतकर भी हारे? यह युद्ध एक जटिल शतरंज का खेल था जिसमें हर पक्ष ने कुछ खोया और कुछ पाया। नैरेटिव वार में ईरान ने अपनी दृढ़ता का संदेश दिया, जबकि इजरायल ने अपने लक्ष्यों को साधने का दावा किया। हालांकि, आम नागरिकों को सिर्फ और सिर्फ नुकसान हुआ है, और मध्य पूर्व में शांति की उम्मीदें अभी भी अनिश्चितता के बादलों से घिरी हुई हैं।
नुकसान और फायदे: ईरान के लिए-
- नुकसान: ईरानी परमाणु और सैन्य ठिकानों को इजरायली हमलों से भारी क्षति पहुंची। नतांज जैसे प्रमुख परमाणु स्थलों पर स्थित सेंट्रीफ्यूज नष्ट हुए, जिससे ईरान का यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम वर्षों पीछे चला गया। कई सैन्य अड्डे, मिसाइल उत्पादन सुविधाएं और तेल रिफाइनरियां भी निशाना बनीं। रिपोर्ट्स के अनुसार, ईरान में 650 से 800 लोग मारे गए, जिनमें 263 नागरिक शामिल थे। आर्थिक रूप से भी ईरान को 150-200 बिलियन डॉलर का बड़ा नुकसान हुआ।
- फायदा: ईरान ने इजरायल पर सीधा हमला करके अपनी सैन्य क्षमता और इजरायल को जवाब देने की इच्छाशक्ति का प्रदर्शन किया। यह उसके लिए एक नैतिक जीत हो सकती है कि उसने अपने सहयोगी हमास के समर्थन में इजरायल को चुनौती दी। ईरान ने खुर्रमशहर-4 जैसी उन्नत बैलिस्टिक मिसाइलों का भी इस्तेमाल किया, जिसे इजरायल पूरी तरह से रोकने में नाकाम रहा। इससे ईरान ने अपनी प्रतिरोधक क्षमता का संदेश दिया। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि ईरान ने इस संघर्ष के माध्यम से अपनी आंतरिक एकता को मजबूत किया।
नुकसान और फायदे: इजरायल के लिए-
- नुकसान: इजरायल में 24-30 नागरिक मारे गए। तेल अवीव, हाइफा और बीर शेवा जैसे शहरों में नागरिक और सैन्य बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा। आयरन डोम जैसी उसकी उन्नत रक्षा प्रणाली भी लगातार हमलों से थकी हुई दिखी, और कुछ मिसाइलें इजरायल के अंदरूनी इलाकों में गिरीं। इजरायल को लगभग 12 बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ। लाखों लोगों को बंकरों में शरण लेनी पड़ी, जिसने आम जीवन को बाधित किया।
- फायदा: इजरायल ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम और मिसाइल सुविधाओं को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाने का दावा किया है, जिसे वह अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा मानता है। इजरायल ने अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों से मजबूत सैन्य और कूटनीतिक समर्थन हासिल किया, जिसने उसकी अंतरराष्ट्रीय स्थिति को मजबूत किया। इजरायली पीएम नेतन्याहू ने दावा किया कि उन्होंने ईरान के परमाणु हथियार बनाने के सपने को चकनाचूर कर दिया।
नैरेटिव वार: तेहरान की जीत?
ईरान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह नैरेटिव बनाने की कोशिश की कि इजरायल ने उस पर पहले हमला किया और उसने जवाबी कार्रवाई की। ईरान ने दिखाया कि वह इजरायल की आक्रामकता के सामने झुकने वाला नहीं है और उसकी संप्रभुता पर हमला करने पर जवाब देगा। कुछ हद तक, ईरान ने यह संदेश देने में सफलता पाई कि उसने दुश्मन को “सबक सिखाया”। अमेरिकी मध्यस्थता के बाद युद्धविराम स्वीकार करना भी ईरान के लिए एक कूटनीतिक जीत हो सकता है, क्योंकि इससे एक बड़े क्षेत्रीय युद्ध का खतरा टल गया।
नैरेटिव वार: नेतन्याहू जीतकर भी हारे?
इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ईरान के खिलाफ “ऐतिहासिक जीत” का दावा किया है और कहा है कि उन्होंने ईरान के परमाणु सपने को बर्बाद कर दिया। हालांकि, घरेलू स्तर पर उनकी स्थिति अभी भी नाजुक हो सकती है। हमास के खिलाफ गाजा में चल रहे संघर्ष और ईरान के सीधे हमले को पूरी तरह से रोकने में नाकामी ने उनकी सरकार पर सवाल उठाए हैं। पहली बार इजरायल में आयरन डोम जैसी प्रणाली पर इतना दबाव देखा गया, जिससे जनता में सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ीं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इजरायल की आक्रामक रणनीति ने क्षेत्र को और अस्थिर किया है, और एक बड़ी जंग को टालने का श्रेय अमेरिका को जाता है, न कि इजरायल को।