हरियाणा में सरकार नौकरी के लिए ऐसे अभ्यर्थियों को 5 अंक मिलते थे, जिनके परिवार को कोई सदस्य नौकरी में नहीं है या जिनके पिता जीवित नहीं है। कुछ अन्य नियमों के तहत अधिकतम 20 अंक तक मिल जाया करते थे, जिससे युवाओं को नौकरी आसानी से मिल जाती थी। शुरुआत में ये नियम हरियाणा के बेरोजगार युवाओं के लिए था, लेकिन बाद में अन्य राज्यों के उम्मीदवारों को भी इसका लाभ मिलने लगा। लेकिन अब पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने इस नीति को रद्द कर दिया है। कोर्ट के अनुसार यह मापदंड संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का सीधा-सीधा उल्लंघन है। सामाजिक-आर्थिक मानदंडों के तहत सरकारी नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों को अतिरिक्त अंक देने की नीति सही नहीं है। न्यायमूर्ति संजीव प्रकाश शर्मा और न्यायमूर्ति सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने ये आदेश पारित किए। उन्होंने ग्रुप सी और डी पदों के लिए सामान्य पात्रता परीक्षा (सीईटी) में प्राप्त अंकों के आधार पर नई मेरिट सूची तैयार करने का भी आदेश दिया।
मेधावी उम्मीदवार हो रहे थे वंचित
11 जून 2019 को जारी अधिसूचना को याचिका के जरिए रद्द करने की मांग याचिकाकर्ताओं ने की थी। उनका कहना था कि सामाजिक और आर्थिक मानपंडों पर दिए गए अतिरिक्त अंकों के कारण मेधावी उम्मीदवारों का चयन नहीं हो पा रहा था। सार्वजनिक नियुक्त के अवसर की समानता से भी वे वंचित हो रहे थे। उन्होंने दावा कि 5 या 10 अंक पाने वाले उम्मीदवार याचिकाकर्ता के मुकाबले योग्यता बहुत कम है।