महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव कई मायने में अलग है। जिस तरह लोकसभा चुनाव के नतीजे आए और हरियाणा में भाजपा ने पलटवार किया, उसे देखते हुए महाराष्ट्र के चुनाव रोचक हो चुके हैं। झारखंड में भले ही भाजपा का घुसपैठ का मुद्दा चल जाए, लेकिन महाराष्ट्र में ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा है। यहां चुनाव में महायुति और महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के बीच कांटे की टक्कर है। शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में हुए विभाजन ने राज्य के राजनीतिक समीकरणों को पूरी तरह से उलट-पुलट कर रख दिया है। इस चुनाव में राहुल गांधी की राजनीति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भविष्य भी निर्भर करेगा। अगर कांग्रेस और एमवीए की जीत हुई तो देशभर में इसका संदेश जाएगा। अगर बीजेपी ने यहां से बाजी मारी तो तय हो जाएगा कि प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता और साख बरकरार है।
उद्धव, शिंदे, फडणवीस और शरद-अजित का भविष्य दांव पर
इन चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, डिप्टी सीएम देवेंद्र फटणवीस, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का भविष्य दांव पर है। साथ ही यह भी तय हो जाएगा कि मराठा राजनीति में शरद पवार या अजित पवार में से किसकी दादागिरी चलने वाली है। इन चुनाव में भारतीय जनता पार्टी, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट और अजीत पवार के राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी गुट एक साथ हैं तो उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी), शरद पवार के एनसीपी-एसएचपी और कांग्रेस से इन्हें टक्कर मिल रही है।
सिर्फ सत्ता की नहीं, अस्तित्व की लड़ाई
दोनों ही गठबंधनों के लिए यह चुनाव सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं है, बल्कि अस्तित्व की लड़ाई भी है। यह चुनाव महाराष्ट्र के राजनीतिक भविष्य को फिर से तय करेगा। इसके साथ ही कोई भी गठबंधन जीते, मुख्यमंत्री पद के लिए उठापटक भी तेज होगी। महायुति में फडणवीस, शिंदे और अजित पवार अपनी दावेदारी ठोकेंगे तो एमवीए में उद्धव के अलावा कांग्रेस और शरद गुट भी पेंच फंसाने का प्रयास करेगा
लोकसभा चुनाव में यह थी स्थिति
एमवीए ने लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र की 48 में से 31 सीटें जीती थीं। बीजेपी का आंकड़ा 23 सीटों से घटकर 9 पर सिमट गया था। कांग्रेस ने 13, शिवसेना (यूबीटी) ने 9 और शरट गुट ने 8 सीटों पर कब्जा किया था। अगर विधानसभावार देखें तो पता चलता है कि एमवीए ने लगभग 160 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त बनाई थी। विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 145 है। हालांकि यह भी तय है कि जनता हर चुनाव में अलग-अलग जनादेश देती है। ऐसे में देखना होगा कि महाराष्ट्र की गद्दी पर कौन काबिज होता है।