नई शिक्षा नीति और तीन भाषाओं के विवाद पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने संसद में बयान दिया है। उन्होंने लोकसभा में कहा कि वे (डीएमके) बेईमान हैं। वे तमिलनाडु के छात्रों के प्रति प्रतिबद्ध नहीं हैं। वे तमिलनाडु के छात्रों का भविष्य बर्बाद कर रहे हैं। प्रधान ने कहा कि उनका एकमात्र काम भाषा की बाधाएं खड़ी करना है। वे राजनीति कर रहे हैं। वे अलोकतांत्रिक और असभ्य हैं। दरअसल तमिलनाडु में डीएमके की ओर से तीन भाषाओं की बाध्यता का विरोध किया जा रहा है। सीएम एमके स्टालिन हिंदी का विरोध कर रहे हैं। वहीं भाजपा उन्हें चुनौती दे रही है कि वे मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई तमिल में कराकर दिखाएं।
यह है पूरा विवाद
केंद्र सरकार और तमिलनाडु सरकार के बीच तीन भाषा पर विवाद चल रहा है। तमिलनाडु सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को राज्य में लागू नहीं किया है और इसका कारण ये बताया है कि यह नीति हिंदी को राज्य में थोपने की कोशिश है। एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके सरकार का कहना है कि राज्य के स्कूलों में पहले से ही दो भाषाओं की नीति लागू है, जिसमें तमिल और अंग्रेज़ी शामिल हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत तीन भाषाओं की नीति है, जिनमें तमिल, अंग्रेज़ी और एक अन्य भारतीय भाषा का अध्ययन शामिल है। हालांकि इस नीति में स्पष्ट रूप से ये नहीं कहा गया है कि तीसरी भाषा हिंदी ही होनी चाहिए। यह कोई भी भारतीय भाषा हो सकती है। डीएमके ने इसे मुद्दा बना लिया है और हिंदी विरोध की अपनी रणनीति को अंजाम देना शुरू कर दिया है। डीएमके पहले भी हिंदी के विरोध में आंदोलन कर चुकी है। ऐसे में उसे लगता है कि इसका उसे सियासी लाभ मिलेगा।