दिल्ली विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। दिल्ली में एक चरण में 5 फरवरी को मतदान होगा, जबकि 8 फरवरी को काउंटिंग होगी। यानि कि मतगणना के लिए एक माह से भी कम का समय बचा है। ऐसे में तीनों पार्टियां पूरी तरह से चुनावी जंग में जुट गई है। भाजपा को लग रहा है कि इस बार उसके पास मौका है कि वह आप की खामियां गिनाकर दिल्ली की सल्तनत हासिल कर सके। वहीं आप भी मजबूती से भाजपा के हर वार का जवाब दे रही है। ऐसे में देखना होगा कि कौन किस पर भारी पड़ता है।
लोकसभा में हाथ लगी नाकामी
भाजपा को लगता है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में वह बाजीगर बन सकती है क्योंकि पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने हाथ मिलाया था और तीन-तीन सीटें लड़ी थीं लेकिन इनमें से कोई भी सीट कांग्रेस और आम आदमी पार्टी नहीं जीत पाई। इसके साथ ही हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव में मिली बंपर जीत ने भाजपा के हौसलों को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया है। ऐसे में उसे लगता है कि इस बार के हालात बदलेंगे।
आपदा अवसर में बदलेगी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आप को आपदा कह चुके हैं और हालात बदलने का नारा दे चुके हैं। ऐसे में यह भाजपा के लिए मौका होगा, क्योंकि 12 साल की एंटी इनकम इंकम्बेंसी के कारण दिल्ली बदहाल अवस्था में है। मोदी खुद कह चुके हैं कि गर्मी में जल संकट, बारिश में जल प्लावन और सर्दी में दिल्ली के लोगों के लिए हवा प्रदूषण हो जाती है। ऐसे में भाजपा को जिताने की अपील में वे कर रहे हैं। अब देखना होगा कि दिल्ली की जनता किसे मौका देती है। दिल्ली की जनता क्या आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल को चुनती है या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर यकीन कर भाजपा को जीतती है।
कांग्रेस के लिए अग्नि परीक्षा
दिल्ली का चुनाव राहुल गांधी के लिए भी अग्नि परीक्षा होंगे। पिछले दो बार से शून्य पर सिमटी कांग्रेस के लिए यहां से उबर पाना किसी चुनौती से कम नहीं है। ऐसे में अगर कांग्रेस पार्टी 8-10 सीटें भी जीत जाती है तो यह उसके लिए किसी उपलब्धि के समान ही होगा। अगर कांग्रेस को ज्यादा वोट मिली तो आप के वोट शेयर में गिरावट आएगी। ऐसे में यह तय है कि वोटो में बिखराव के करण बिखराव से भाजपा को लाभ मिल सकता है। हालांकि आम आदमी पार्टी के साथ पॉजिटिव प्वाइंट यह है कि उसने उम्मीदवार पहले ही घोषित कर दिए हैं और चुनाव की तैयारी में भी वह आगे नजर आ रही है और सीएम के लिए केजरीवाल का चेहरा भी है। ऐसे में भाजपा को उसे पछाडऩे में कड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है। अब देखना होगा केजरीवाल की काट के तौर पर भाजपा क्या कुछ करती है।