बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के परिणामों ने कांग्रेस पार्टी को सबसे बुरे प्रदर्शन के रसातल में धकेल दिया है। नतीजों से साफ हो गया है कि पार्टी के दशकों से चले आ रहे संकट को उसकी कमजोर रणनीति, कमजोर संगठन और नेतृत्व की ‘पार्ट टाइम’ सियासत ने और गहरा कर दिया है।
पार्टी के ही वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि इस करारी हार के लिए कई आंतरिक और रणनीतिक खामियां जिम्मेदार हैं। पार्टी को केवल 8.73 फीसदी मत मिले, जो लगभग 2010 के प्रदर्शन (8.37 फीसदी) के बराबर है, जब पार्टी सिर्फ चार सीटें ही जीत पाई थी।
1. गलत टिकट वितरण से कार्यकर्ताओं में विद्रोह
कांग्रेस की सबसे बड़ी गलतियों में से एक गलत टिकट वितरण रही। पार्टी ने भाजपा, जदयू और लोजपा जैसे एनडीए दलों से आए कई दल-बदलुओं को न केवल पार्टी में जगह दी, बल्कि उन्हें अहमियत देते हुए टिकट भी दे दिए। स्थानीय नेताओं ने सवाल उठाए कि अगर ऐसे लोगों को टिकट दिया जाएगा, जिनकी सोशल मीडिया वॉल पर अब भी एनडीए नेताओं के साथ तस्वीरें हैं, तो पार्टी की विश्वसनीयता क्या रह जाएगी?
- सोनबरसा, कुम्हरार, नौतन, फारबिसगंज और सीतामढ़ी जैसे जिलों में टिकट वितरण को लेकर खुला विद्रोह देखने को मिला, जिससे जमीनी स्तर पर पार्टी की पकड़ और कमजोर हुई।
2. पार्ट टाइम सियासत और जमीनी मुद्दों से दूरी
पार्टी के शीर्ष नेतृत्व और खासकर राहुल गांधी की पार्ट टाइम सियासत और गलत चुनावी मुद्दों पर अत्यधिक जोर देना भी हार का कारण बना। राहुल गांधी ने मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) और ‘वोट चोरी अभियान’ को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया, लेकिन पार्टी के ही वरिष्ठ नेताओं ने स्वीकार किया कि जमीनी स्तर पर इन अभियानों का कोई असर नहीं दिखा।
- जब एसआईआर और वोट चोरी जैसे मुद्दे फुस्स हो गए, तब नेतृत्व ने रोजी-रोजगार के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
3. सामाजिक न्याय और महिला वोट बैंक में नाकामी
कांग्रेस सामाजिक न्याय के मुद्दे को धार नहीं दे पाई। इस अभियान के कारण पार्टी का बचा-खुचा उच्च वर्ग (सवर्ण) का वोट बैंक भी दूर चला गया। वहीं, पार्टी महिलाओं और अति पिछड़े वर्ग (ईबीसी) के बीच नीतीश कुमार की लोकप्रियता में कोई सेंध नहीं लगा सकी। महागठबंधन एमवाई (मुस्लिम-यादव) वोट बैंक से आगे अपना दायरा नहीं बढ़ा पाया।
बिहार की राजनीति में वापसी असंभव
पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार जैसे वरिष्ठ नेताओं ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि यह परिणाम संगठन की कमजोरी को दर्शाता है। बिहार में पार्टी की संगठनात्मक शक्ति लगभग हाशिए पर चली गई थी। चुनाव के रुझान शुरू होते ही आत्ममंथन की आवाजें उठने लगीं कि रणनीतिक, संदेशात्मक या संगठनात्मक स्तर पर पार्टी कहां नाकाम साबित हुई। कुल मिलाकर, 2025 के चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए एक चेतावनी हैं कि कमजोर संगठन, दलबदलुओं को टिकट देने की नीति और खराब रणनीति के साथ बिहार की राजनीति में वापसी करना असंभव है।


