दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार खत्म हो चुका है और अब वोटिंग के लिए 24 घंटे का ही समय बचा हुआ है। दिल्ली में मुख्य मुकाबला आप और भाजपा के बीच माना जा रहा है, लेकिन इस बार कांग्रेस भी पूरा जोर लगाए हुए है। कांग्रेस और आप में मुख्य तौर पर मुस्लिम बहुल 22 सीटों पर टक्कर है। मुस्लिम मतदाता आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच असमंजस में हैं। केजरीवाल की योजनाओं से प्रभावित होने के बावजूद कुछ मतदाता कांग्रेस की ओर भी रुख कर रहे हैं। ऐसा हुआ तो यह आप के लिए खतरे की घंटी होगा। वैसे भी आप ने कांग्रेस का वोटबैंक हथियाकर ही सत्ता हासिल की है। ऐसे में अगर कांग्रेस थोड़ी भी मजबूत हुई तो आप के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है।
मुस्लिम वोट के लिए है लड़ाई
दिल्ली में विधानसभा चुनाव सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की नजरें मुस्लिम बहुल मानी जाने वाली करीब 22 सीटों पर टिकी हैं। पांच सीट सीलमपुर, मुस्तफाबाद, मटिया महल, बल्लीमारान और ओखला सीट से तो अक्सर मुस्लिम उम्मीदवार ही विधानसभा पहुंचते रहे हैं। इसके अलावा बाबरपुर, गांधीनगर,चांदनी चौक, सदर बाजार, सीमापुरी, जंगपुरा, किराड़ी व करावल नगर समेत 18 सीट ऐसी हैं, जहां मुस्लिम आबादी 10 से 40 फीसदी मानी जाती है। इन क्षेत्रों में मुस्लिम समुदाय निर्णायक भूमिका अदा करता रहा है। 2011 की जनगणना के मुताबिक दिल्ली में मुस्लिम आबादी करीब 13 फीसदी थी। जानकार मानते हैं कि इस बार मुस्लिम मतदाता सत्तारूढ़ ‘आप’ और कांग्रेस को लेकर असमंजस में है।
कांग्रेस के परंपरागत वोटर हैं मुस्लिम
दिल्ली के मुस्लिम मतदाता परंपरागत तौर पर कांग्रेस को वोट देते आए हैं लेकिन 2015 में वह कांग्रेस का हाथ छोड़ झाड़ू के पाले में चले गए। 2020 के चुनाव में अल्पसंख्यक समुदाय ने और मजबूती से आप को समर्थन दिया। इस वजह से ज्यादातर मुस्लिम बहुल इलाकों में कांग्रेस के उम्मीदवार अपनी जमानत भी नहीं बचा सके। उत्तर पूर्वी दिल्ली के 2020 के दंगे, कोरोना वायरस महामारी के दौरान उपजे तब्लीगी जमात के मुद्दे और अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े मुद्दों पर आप की कथित चुप्पी से इस बार मुस्लिम मतदाताओं में आप को लेकर नाराजग़ी है।


