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    नौसेना की ‘आँख’ बनेगा CMS-03, जानें अंतरिक्ष में कब स्थापित होगा ISRO का उपग्रह

    भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) आज, 2 नवंबर 2025 को एक और ऐतिहासिक मिशन को अंजाम देने के लिए तैयार है। इसरो अपने सबसे शक्तिशाली रॉकेट LVM3-M5 के माध्यम से देश के सबसे भारी संचार उपग्रह CMS-03 (कम्युनिकेशन सैटेलाइट मिशन-03) को अंतरिक्ष में स्थापित करेगा। इसे रविवार शाम 5:26 बजे प्रक्षेपित किया जाना है।

    ‘बाहुबली’ रॉकेट का कमाल

    CMS-03 उपग्रह को लॉन्च करने के लिए इसरो अपने LVM3-M5 रॉकेट का उपयोग कर रहा है, जिसे इसकी भारी पेलोड क्षमता के कारण ‘बाहुबली’ नाम दिया गया है।

    • सबसे भारी उपग्रह: लगभग 4,410 किलोग्राम वजनी यह उपग्रह, भारतीय धरती से जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में प्रक्षेपित होने वाला अब तक का सबसे भारी संचार उपग्रह होगा।
    • क्षमता: LVM3-M5 रॉकेट की क्षमता 4,000 किलोग्राम तक के भारी पेलोड को GTO में ले जाने की है।
    • पिछला मिशन: इसी रॉकेट ने 2023 में भारत के ऐतिहासिक चंद्रयान-3 मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च किया था, जिसने भारत को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बनाया।

    नौसेना को मिलेगी ‘समुद्री आँख’

    CMS-03 उपग्रह को मुख्य रूप से भारतीय नौसेना (Indian Navy) के लिए तैयार किया गया है, जहां यह एक ‘समुद्री आँख’ के रूप में काम करेगा। इस उपग्रह का मुख्य उद्देश्य नौसेना की समुद्री सुरक्षा और संचार क्षमताओं को मजबूत करना है। यह उपग्रह नौसेना के जहाजों, पनडुब्बियों और विमानों के बीच दूरदराज के समुद्री क्षेत्रों में भी तेज़, उच्च बैंडविड्थ और सुरक्षित संचार स्थापित करेगा। इससे नौसेना को हिंद महासागर और अन्य विशाल समुद्री क्षेत्रों में दुश्मन की गतिविधियों पर रीयल-टाइम निगरानी रखने में मदद मिलेगी। यह उपग्रह पुराने GSAT-7 (रुक्मिणी) सैटेलाइट का स्थान लेगा। समुद्री तूफान जैसी विपरीत परिस्थितियों में भी संचार संपर्क टूटेगा नहीं, जिससे नौसेना की कमान और नियंत्रण प्रणाली (Command and Control) और भी मज़बूत होगी।

    नागरिक सेवाओं को भी मिलेगा फायदा

    CMS-03 एक मल्टी-बैंड संचार उपग्रह है जो नागरिक क्षेत्रों में भी कनेक्टिविटी को बढ़ाएगा। यह दूरदराज के क्षेत्रों तक डिजिटल पहुंच में सुधार करेगा, जिससे टेलीमेडिसिन, ऑनलाइन शिक्षा और आपदा प्रबंधन जैसी नागरिक सेवाओं को प्रभावी बनाने में मदद मिलेगी। इस ऐतिहासिक लॉन्च से अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की आत्मनिर्भरता और वैश्विक प्रतिष्ठा को एक नई उड़ान मिलेगी।

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