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    चीन का K-वीजा : क्या अमेरिका के H-1B की जगह लेगा? जानें मुख्य विशेषताएं और उद्देश्य

    चीन ने आज से अपनी नई ‘के-वीजा’ नीति लागू कर दी है। इस कदम को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की हालिया एच-1बी वीजा नीति को एक रणनीतिक जवाब माना जा रहा है, जिसमें अमेरिका ने विदेशी उच्च कौशल वाले कर्मचारियों के लिए लागत बढ़ा दी थी। के-वीजा का लक्ष्य विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में वैश्विक प्रतिभाओं को चीन की ओर आकर्षित करना है।


    क्या है के-वीजा और इसकी मुख्य विशेषताएं?

    के-वीजा एक नई वीजा श्रेणी है जिसे चीन ने विदेशियों के प्रवेश और निकास नियमों में संशोधन करके पेश किया है।

    • मुख्य लक्ष्य: यह वीजा विशेष रूप से विदेशी युवाओं और विज्ञान तथा तकनीक से जुड़ी प्रतिभाओं को चीन में काम करने और बसने में ढील देगा।
    • पात्रता (STEM): आवेदक के पास दुनिया के किसी भी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय या अनुसंधान संस्थान से विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित (STEM) क्षेत्रों में कम से कम स्नातक की डिग्री होनी चाहिए। इसके अलावा, युवा पेशेवर STEM से जुड़े शिक्षा या अनुसंधान कार्य में अनुभव रखते हों।
    • आयु सीमा: प्रतिभाशाली युवा वैज्ञानिक कार्यक्रम में अधिकतम आयु सीमा 45 वर्ष है, जबकि उत्कृष्ट युवा वैज्ञानिक निधि परियोजना में यह 40 वर्ष निर्धारित की गई है।
    • अन्य वीजा से भिन्नता: मौजूदा 12 सामान्य वीजा श्रेणियों (जैसे Z, X, M, Q वीजा) की तुलना में, के-वीजा धारकों को चीन में आने-जाने की अवधि में अधिक छूट मिलेगी। वे शिक्षा, संस्कृति, विज्ञान के अलावा उद्यमिता (स्टार्टअप) और कारोबारी गतिविधियों में भी शामिल हो सकते हैं।

    के-वीजा लाने के पीछे चीन का उद्देश्य

    के-वीजा योजना की शुरुआत चीन की 20वीं राष्ट्रीय कांग्रेस रिपोर्ट से हुई, जिसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय नवाचार को बढ़ावा देना है।

    • बाधाएं कम करना: चीन का मानना है कि के-वीजा के जरिए योग्य व्यक्तियों के लिए देश में प्रवेश करने की बाधाएं कम होंगी।
    • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा: चीन सक्रिय रूप से और प्रतिस्पर्धात्मक ढंग से दुनिया के बेहतरीन और प्रतिभाशाली लोगों को आकर्षित करना चाहता है।
    • AI में बढ़ती रुचि: चीन ने यह कदम ऐसे समय में उठाया है जब स्टडीपोर्टल्स के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) डिग्री में रुचि 25% तक गिरी है, जबकि चीन में इसी विषय में अध्ययन करने में रुचि 88% बढ़ी है।

    क्या के-वीजा, अमेरिका के H-1B वीजा का विकल्प बन पाएगा?

    विशेषज्ञों की राय इस मामले में बंटी हुई है। कई लोगों का मानना है कि के-वीजा, अमेरिका के H-1B वीजा का सीधा विकल्प नहीं बन पाएगा, लेकिन यह एक मजबूत विकल्प जरूर देगा।

    • सीधा प्रतिस्पर्धी नहीं: सिंगापुर के नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर लियू हांग के अनुसार, के-वीजा को H-1B के प्रतिस्पर्धी या विकल्प के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। H-1B एक पारंपरिक कार्य वीजा है जिसके लिए नियोक्ता प्रायोजन, उच्च शैक्षणिक योग्यता और न्यूनतम वेतन जैसी उच्च आवश्यकताएं होती हैं।
    • चीनियों को आकर्षित करना: लियू हांग को उम्मीद है कि के-वीजा के अधिकांश आवेदक विदेश में बसे दूसरी पीढ़ी के चीनी होंगे जो तकनीक और विज्ञान के क्षेत्र में काम कर रहे हैं।
    • छोटे व्यवसायों को लाभ: शेन्जेन स्थित हेडहंटर एंगस चेन के अनुसार, यह वीजा उन स्टार्टअप्स के लिए सबसे अधिक मददगार होगा जिनके पास पारंपरिक रोजगार वीजा के लिए आवेदन करने के संसाधन नहीं हैं। साथ ही, यह चीन में काम की तलाश कर रहे विदेशी छात्रों के लिए भी नौकरी पाना आसान करेगा।
    • एक विकल्प का निर्माण: कंसल्टेंसी फर्म द एशिया ग्रुप के जॉर्ज चेन ने कहा कि जो विदेशी तकनीकी कर्मचारी अमेरिका की ‘अमेरिका फर्स्ट’ संस्कृति से चिंतित हैं, वे के-वीजा की खबरें देखकर यह सोच सकते हैं कि उनके पास कम से कम एक और विकल्प मौजूद है।

    हालांकि, स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के डैन वांग ने कहा कि चीन लंबे समय से विदेशी विशेषज्ञता की तलाश में रहा है, लेकिन यह चुनिंदा और अपनी शर्तों पर ही रही है। उनका मानना है कि के-वीजा के H-1B की जगह लेने की संभावना कम है, क्योंकि अमेरिकी H-1B वीजा धारकों में अधिकांश भारतीय हैं।

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