भारत, चीन और रूस जैसे ताकतवर देश ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शामिल हो रहे हैं। भले ही यह 5 देशों का गुट रहा हो, लेकिन अब इसमें 30 देश शामिल होने के इच्छुक हैं। इससे साफ दिख रहा है कि ब्रिक्स पश्चिमी देशों के लिए शेडबैक की तरह है। सम्मेलन से ठीक पहले चीन का रुख नरम हुआ है। चीन भारत से सीमा विवाद सुलझाने को तैयार है तो एलएसी पर पहले वाली स्थिति बनाए रखने पर सहमत हुआ है। ब्रिक्स बैठक से ठीक पहले चीन ने भारत की मांग के आगे झुकते हुए भारतीय सैनिकों को पेट्रोलिंग का अधिकार देने पर सहमति जता दी है।
तकरार को कम करने पर्दे के पीछे से निभाई अहम भूमिका
अंतरराष्ट्रीय मामलों के विश्लेषकों का कहना है कि पश्चिमी देशों के साथ इस तनावपूर्ण माहौल के बीच रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने चीन और भारत के बीच तकरार को कम करने के लिए पर्दे के पीछे से अहम भूमिका निभाई है। यूक्रेन युद्ध के बाद रूस अब चीन पर बहुत ज्यादा निर्भर हो गया है। भारत ने भी दोस्त रूस से जमकर तेल, खाद और अन्य सामान खरीदे हैं। इससे रूस को बहुत मदद मिली है। भारत और रूस के बीच व्यापार अपने रिकॉर्ड स्तर पर चल रहा है।
भारत के सख्त रुख के बाद झुका चीन
भारत के सख्त रुख के बाद रूस ने भी चीन को पिछले 5 साल में कई बार समझाया है। चीन को यह हकीकत स्वीकार करनी पड़ी कि भारत और रूस के बीच में गहरी दोस्ती बनी रहे, नहीं तो भारत अमेरिका के पाले में चला जाएगा। ऐसे में भारत फिर पश्चिमी देशों से हथियार खरीदेगा और इससे वे देश मजबूत होंगे जिनसे चीन की तनातनी है। 5 साल में अमेरिका ने भी भारत और रूस के बीच फूट डालने का प्रयास किया। कई ऐसे बयान आए जिसमें कहा गया कि रूस चीन का जूनियर पार्टनर बन गया है और यह भारत के लिए खतरनाक होगा। अगर चीन से लड़ाई हुई तो रूस भारत का साथ नहीं देगा। इन सब अमेरिकी बयानों के बीच कोशिश यह है कि भारत को अपने पाले में लाया जाए। यह स्थिति रूस और चीन के लिए मुसीबत भरी होती। यही वजह है कि पुतिन ने जिनपिंग और मोदी के बीच का फासला कम किया और तनाव कम करने में मदद की।