भारत की परमाणु नीति पहले इस्तेमाल नहीं की है, जिसका अर्थ है कि भारत परमाणु हथियारों का इस्तेमाल तब तक नहीं करेगा जब तक कि उस पर या उसके क्षेत्र में कहीं और परमाणु हमला न हो। हालांकि भारत के पास एक मजबूत और विश्वसनीय परमाणु प्रतिरोधक क्षमता मौजूद है ताकि किसी भी संभावित परमाणु हमले को रोका जा सके। इन क्षमताओं के साथ-साथ, भारत के पास एक मजबूत कमान और नियंत्रण प्रणाली है जो परमाणु हथियारों के इस्तेमाल संबंधी किसी भी निर्णय को सुरक्षित और अधिकृत तरीके से सुनिश्चित करती है।
भारत की परमाणु प्रतिरोधक क्षमता में कई परतें शामिल
- हवाई प्रतिरोधक क्षमता : भारतीय वायुसेना के पास परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम लड़ाकू विमानों का बेड़ा है।
- जमीनी प्रतिरोधक क्षमता : भारत के पास विभिन्न रेंज की बैलिस्टिक मिसाइलें हैं जो परमाणु हथियार ले जा सकती हैं, जैसे कि अग्नि श्रृंखला की मिसाइलें।
- समुद्री प्रतिरोधक क्षमता : भारत ने परमाणु पनडुब्बियों (आईएनएस अरिहंत श्रेणी) को भी विकसित किया है, जो समुद्र में रहकर परमाणु हमला करने की क्षमता रखती हैं। यह विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोधक क्षमता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो दुश्मन के पहले हमले से बचने और जवाबी कार्रवाई करने की क्षमता प्रदान करता है।
विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं
रमाणु युद्ध के जोखिम को पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जा सकता है। परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने का निर्णय एक जटिल और गंभीर मामला है जिसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। भारत की परमाणु नीति और उसकी मजबूत प्रतिरोधक क्षमता का उद्देश्य किसी भी देश को भारत पर परमाणु हमला करने से रोकना है, जिससे क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनी रहे। ऐसे में भारत रोक सकता है और पाकिस्तान के परमाणु कमांड को नष्ट भी कर सकता है। भारत ने एक मजबूत प्रतिरोधक क्षमता विकसित की है जिसका उद्देश्य किसी भी परमाणु हमले को हतोत्साहित करना और यदि ऐसा होता है तो प्रभावी ढंग से जवाब देना है।