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    BJP की रथयात्रा ने बदल दिया था माहौल.. मोदी ने तब लिया था संकल्प जो हुआ पूरा

    प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि पर मंदिर बनाने के लिए देश की कई पीढिय़ों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। रामलला को विराजमान करने के लिए 5 सौ साल लग गए। 90 के दशक में जब बीजेपी की राम रथयात्रा निकली तो देश का माहौल बदल गया। तब पीएम नरेंद्र मोदी भी रथयात्रा के सारथी बने थे और उन्होंने गुजरात में कमान संभाली थी। यह माना जाता है कि तब उन्होंने संकल्प लिया था कि जब राममंदिर बनेगा, तभी वह अयोध्या जाएंगे। लोकसभा चुनाव में कभी मोदी अयोध्या नहीं गए। जो उनका संकल्प था, हुआ भी वैसा ही और 2020 में वे भूमिपूजन करने गए। 30 दिसंबर 2023 को भी वे एयरपोर्ट और रेलव स्टेशन का उद्घाटन करने आए थे।
    जानें कब क्या हुआ
    ब्रिटिश इतिहासकारों की मानें 1855 में नवाबी शासन के दौरान मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद पर जमा होकर कुछ सौ मीटर दूर अयोध्या के सबसे प्रतिष्ठित हनुमानगढ़ी मंदिर पर क़ब्ज़े का प्रयास किया था। इस ख़ूनी संघर्ष में हिंदू वैरागियों ने हमलावरों को हनुमान गढ़ी से खदेड़ दिया था और बाबरी मस्जिद परिसर में जा छिपे। इस दौरान हुए खूनी संघर्ष में कई लोग मारे गए। 1857 में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में हिंदुओं ने मस्जिद के बाहरी हिस्से पर क़ब्ज़ा करके चबूतरा बना लिया और भजन-पूजा शुरू कर दिया। 1859 में अंग्रेजों ने पूजा और नमाज के लिए मुसलमानों को अंदर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग करने के लिए दे दिया। 1934 में गोहत्या को लेकर दंगा हुआ जिसमें बाबरी मस्जिद को नुकसान पहुंचा, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इसकी मरम्मत करवा दी। 1936 में मुसलमानों के दो समुदायों शिया और सुन्नी के बीच मस्जिद पर दावे को लेकर क़ानूनी विवाद उठ गया। वक्फ़ कमिश्नर ने 8 फऱवरी 1941 को दी गई अपनी रिपोर्ट में कहा कि मस्जिद की स्थापना करने वाला बादशाह सुन्नी था और इमाम और नमाज़ पढऩे वाले सुन्नी हैं, इसलिए यह सुन्नी मस्जिद हुई।
    22-23 दिसंबर 1949 की रात थी निर्णायक
    जुलाई 1949 में बाबा राघव दास चुनाव में जीते तो उन्होंने तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर मंदिर निर्माण की अनुमति माँगी। 22-23 दिसंबर 1949 की रात अभय रामदास और उनके साथियों ने विवादित स्थल की दीवार फाँदकर राम-जानकी और लक्ष्मण की मूर्तियां मस्जिद के अंदर रख दीं। उस समय यह प्रचारित किया गया कि भगवान राम ने प्रकट होकर अपने जन्मस्थान पर वापस क़ब्जा प्राप्त कर लिया है। 3 दशक तक यह विवाद चलता रहा। 8 अप्रैल 1984 को दिल्ली के विज्ञान भवन में राम मंदिर निर्माण के लिए धर्म संसद बुलाई गई। संघ परिवार ने आंदोलन छेडऩे की रणनीति बनाई। 1986 में विश्व हिंदू परिषद ने मस्जिद का ताला खोलने के लिए फिर आंदोलन तेज़ किया। चेतावनी दी गई कि महाशिवरात्रि पर 6 मार्च 1986 तक ताला न खुला तो ज़बरन ताला तोड़ देंगे। माना जाता है कि इसी दबाव में आकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने फ़ैज़ाबाद जि़ला अदालत में वक़ील उमेश चंद्र पांडेय से ताला खुलवाने की अर्जऱ्ी डलवाई। जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस कप्तान ने जि़ला जज की अदालत में कहा कि ताला खुलने से कोई परेशानी नहीं होगी। इस बयान के आधार पर जि़ला जज केएम पांडेय ने ताला खोलने का आदेश दिया। भाजपा ने 11 जून 1989 को पालमपुर कार्यसमिति में प्रस्ताव पास किया कि सरकार समझौते या संसद में क़ानून बनाकर राम जन्मस्थान हिंदुओं को सौंप दे।
    बाबरी मस्जिद का हुआ विध्वंस
    25 सितंबर 1990 को भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी सोमनाथ मंदिर से अयोध्या की रथयात्रा पर निकल पड़े और नारा दिया कि रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे। इस रथयात्रा में अब के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आडवाणी के सारथी बने। तब बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने आडवाणी को बिहार में रथयात्रा की अनुमति नहीं दी और उन्हें गिरफ़्तार करके रथयात्रा रोक दी। नाराज भाजपा ने केंद्र की जनता दल सरकार से समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई।
    30 अक्टूबर 1990 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की तमाम पाबंदियों के बावजूद लाखों कार सेवक अयोध्या पहुँच गए। लाठी गोली चलने के बावजूद कुछ कारसेवक मस्जिद के गुंबद पर चढ़ गए। लेकिन अंत में पुलिस की सख्ती भारी पड़ी और जिला प्रशासन ने कारसेवकों पर गोली चलवा दी जिसमें 16 करसेवक मारे गए। दिसंबर 1992 में फिर कारसेवा का ऐलान हुआ। उस समय उप्र में भाजपा की सरकार थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने पुलिस को बल प्रयोग न करने की हिदायत दी। 6 दिसंबर 1992 को आडवाणी, जोशी और सिंघल जैसे शीर्ष नेताओं, सुप्रीम कोर्ट के ऑब्ज़र्वर जि़ला जज तेजशंकर और पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में लाखों कारसेवकों ने मस्जिद के गुंबदों को तोडक़र टेंट लगाकर अस्थायी मंदिर बना दिया। इसके बाद केंद्र सरकार ने उप्र समेत भाजपा की 4 राज्यों में सरकारों को बर्खास्त कर दिया। भाजपा ने इसे भगवान राम के प्रति अपने समर्पण बताया।

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