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    BJP के दांव से अखिलेश की बढ़ी टेंशन, पंकज चौधरी के अध्यक्ष बनने की ये है इनसाइड स्टोरी

    भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने उत्तर प्रदेश में पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर एक बड़ा सियासी दांव चला है। केंद्र में वित्त राज्य मंत्री रहे पंकज चौधरी की यह नियुक्ति, समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव द्वारा बनाए जा रहे ‘PDA’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) समीकरण की सीधी काट मानी जा रही है, जिसने लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को बड़ा झटका दिया था।

    पंकज चौधरी को अध्यक्ष बनाने की ‘इनसाइड स्टोरी’

    पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के पीछे बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की गहरी रणनीति है:

    • कुर्मी वोट बैंक पर निशाना: पंकज चौधरी पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुर्मी समाज के एक बड़े और स्थापित नेता हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को कुर्मी/कोरी वोटों का बड़ा हिस्सा (लगभग 19%) गँवाना पड़ा था, जो सपा के पाले में गया था। पंकज को अध्यक्ष बनाकर बीजेपी का लक्ष्य इस महत्वपूर्ण गैर-यादव ओबीसी वोट बैंक को 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले वापस अपने पाले में लाना है।
    • अखिलेश के दावे पर दांव: अखिलेश यादव लगातार यह दावा कर रहे थे कि पिछड़ों का एक बड़ा वर्ग (खासकर कुर्मी) बीजेपी से छिटक गया है। बीजेपी ने पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर उनके इस दावे पर सीधा पलटवार किया है और एक बड़ा राजनीतिक संदेश दिया है।
    • संगठनात्मक अनुभव: पंकज चौधरी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1989 में पार्षद के तौर पर की थी और वह महाराजगंज से सात बार सांसद रह चुके हैं। उनका यह लंबा अनुभव और सरकार व संगठन दोनों में पकड़, उन्हें 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए संगठन को मजबूत करने हेतु एक आदर्श विकल्प बनाती है।
    • मोदी-शाह की पसंद: पंकज चौधरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का करीबी माना जाता है। 2023 में पीएम मोदी का गोरखपुर दौरे के दौरान उनके घर अचानक जाना उनकी केंद्रीय नेतृत्व में अच्छी पकड़ को दर्शाता है।

    अखिलेश यादव की टेंशन क्यों बढ़ी?

    बीजेपी के इस ‘चौधरी दांव’ ने अखिलेश यादव के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है:

    1. ‘PDA’ की काट: अखिलेश यादव की पूरी रणनीति गैर-यादव ओबीसी वोटों को एकजुट करके सत्ता तक पहुंचने की है। कुर्मी समाज इसी समीकरण का एक प्रमुख स्तंभ है। पंकज चौधरी की नियुक्ति इस स्तंभ को कमजोर कर सकती है, जिससे सपा की नींव हिलने का खतरा है।
    2. पूर्वांचल में सेंधमारी: गोरखपुर के आसपास के क्षेत्र में पंकज चौधरी का मजबूत प्रभाव है। यह नियुक्ति पूर्वांचल के ओबीसी वोटों पर बीजेपी की पकड़ को मजबूत करेगी, जहां सपा ने पिछले चुनाव में अच्छी सफलता हासिल की थी।
    3. अपना दल (S) के साथ संतुलन: अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल पहले से ही कुर्मी समुदाय का बड़ा चेहरा हैं। पंकज चौधरी को कमान सौंपकर बीजेपी ने कुर्मी समाज के भीतर अपनी उपस्थिति को और मजबूत किया है, जिससे यह संदेश जाता है कि पार्टी ओबीसी को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है।

    पंकज चौधरी के नेतृत्व में, बीजेपी अब 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले जातीय संतुलन को साधने और गैर-यादव ओबीसी को फिर से अपने साथ जोड़ने की दिशा में जुट गई है।

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