केंद्र की मोदी सरकार एक देश, एक चुनाव पर अब बड़ा कदम उठाने वाली है। 25 नवंबर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में एक राष्ट्र, एक चुनाव पर बिल पेश करने की तैयारी हो चुकी है। सरकार विपक्षी दलों से बातचीत करके आम सहमति बनाने का प्रयास करेगी। बिल के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी, जिसके लिए विपक्ष और गैर-एनडीए दलों के समर्थन की आवश्यकता होगी। बिल पास हुआ तो स्थानीय निकाय, विधानसभा और लोकसभा चुनाव के एक साथ होने की राह आसान हो जाएगी। हालांकि आम चुनावों के साथ तालमेल बिठाने के लिए अनुच्छेद 325 में संशोधन करके अनुच्छेद 324-ए में संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी। इसके लिए राज्यों द्वारा समर्थन की आवश्यकता होगी। यही वजह है कि सरकार कांग्रेस से बातचीत करके आम सहमति बनाने के प्रयास करेगी। हालांकि कांग्रेस सहित इंडिया गठबंधन के दल इसके लिए आसानी से तैयार नहीं होंगे। ऐसे में सरकार के सामने बिल पास कराना बड़ी चुनौती होगी।
सरकार बताएगी फायदे, बनाएगी माहौल
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व वाली समिति की रिपोर्ट संसद में पेश की जाएगा। विधेयक पेश होने के बाद सरकार संसद में बहस शुरू करेगी। व्यापक सहमति बनने तक मतदान को टाल सकती है। इस दौरान सरकार का प्रयास होगा कि एक देश, एक चुनाव के फायदे देश को बताए जाएं। इसके साथ ही देश में माहौल बनाने का प्रयास किया जाएगा। सरकार की ओर से बताया जाएगा कि देश में एक चुनाव होने से समय और धन की बचत होगी। एक बार चुनाव होने से विकास कार्य तेजी से होंगे तो बार-बार आचार संहिता नहीं लगेगी।
5 साल में एक बार चुनाव, इसलिए जरूरी
संसदीय मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने संकेत दिया कि देश के विकास के लिए हर पांच साल में एक साथ चुनाव होने चाहिए। हम संसद में संबंधित बिल लाने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में विपक्ष की गुंजाइश तो होती है, लेकिन विपक्ष के लिए विधेयकों का विरोध नहीं किया जाना चाहिए। रिजिजू ने कहा कि देश को यह बताने के लिए चर्चा होनी चाहिए कि चुनाव एक साथ क्यों कराए जाने चाहिए। पहले प्रस्तावित संविधान संशोधन विधेयक में अनुच्छेद 83 (लोकसभा की अवधि) और अनुच्छेद 172 (राज्य विधानसभाओं की अवधि) में संशोधन करके अनुच्छेद 82ए के तहत संशोधन की आवश्यकता है। इस संशोधन के लिए राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता नहीं है।


