बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची पुनरीक्षण का मामला अब सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गया है। राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं और गड़बड़ियों का आरोप लगाते हुए इसमें तत्काल सुधार की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए 10 जुलाई को इस पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की है।
राजद ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा चलाए जा रहे मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान में पारदर्शिता की कमी है और इसमें जानबूझकर त्रुटियां की जा रही हैं। पार्टी का दावा है कि बड़ी संख्या में पात्र मतदाताओं के नाम सूची से हटाए जा रहे हैं या गलत तरीके से जोड़े जा रहे हैं, जिससे आगामी चुनावों की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े हो सकते हैं। राजद ने कई ऐसे उदाहरण भी प्रस्तुत किए हैं, जिनमें एक ही परिवार के सदस्यों के नाम अलग-अलग हिस्सों में या गलत तरीके से दर्ज पाए गए हैं।
मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए, आज याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जल्द सुनवाई की अपील की। सूत्रों के अनुसार, वकीलों ने तर्क दिया कि मतदाता सूची किसी भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया की रीढ़ होती है और इसमें किसी भी तरह की छेड़छाड़ सीधे तौर पर चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को प्रभावित करेगी। उन्होंने न्यायालय से मांग की कि निर्वाचन आयोग को निष्पक्ष और त्रुटिरहित मतदाता सूची सुनिश्चित करने के लिए उचित निर्देश दिए जाएं।
न्यायालय ने राज्य निर्वाचन आयोग और केंद्र सरकार को भी नोटिस जारी कर इस मामले पर अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है। यह मामला बिहार में राजनीतिक सरगर्मी को और बढ़ाएगा, जहां कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं। विपक्षी दल पहले से ही सरकार पर चुनावी धांधली का आरोप लगा रहे हैं, और अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचने से इसकी गंभीरता और बढ़ गई है। सभी की निगाहें अब 10 जुलाई को होने वाली सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर टिकी हैं।