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    बिहार चुनाव 2025: RJD की वापसी या नीतीश की हैट्रिक? क्या हैं समीकरण और मुद्दे

    बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की राजनीतिक बिसात बिछाई जा रही है और राज्य की राजनीति में एक बार फिर से गहमागहमी शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए अपनी सत्ता को बरकरार रखने की कोशिश करेगा, वहीं राजद नेता तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री की कुर्सी पर वापसी के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं। इस चुनाव में कई समीकरण और मुद्दे निर्णायक साबित हो सकते हैं।

    चुनावी समीकरण: कौन किस पर भारी?

    ​बिहार का चुनाव हमेशा जातीय समीकरणों पर आधारित रहा है।

    • एनडीए (NDA): भाजपा, जेडीयू, एलजेपी (रामविलास) और जीतन राम मांझी की हम पार्टी के साथ मिलकर, एनडीए एक मजबूत गठबंधन बनाता है। इस गठबंधन का मुख्य आधार अति पिछड़ा, पिछड़ा, सवर्ण और महादलित समुदाय का वोट बैंक है। नीतीश कुमार की छवि सुशासन बाबू की रही है, जबकि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता भाजपा को मजबूती देती है।
    • महागठबंधन (Mahagathbandhan): राजद, कांग्रेस और वामपंथी दल मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। इस गठबंधन का मुख्य वोट बैंक यादव और मुस्लिम समुदाय है, जिसे ‘एम-वाई’ समीकरण कहा जाता है। तेजस्वी यादव ने अपने ‘ए-टू-जेड’ (A-to-Z) की बात कहकर सभी वर्गों को साधने की कोशिश की है। अगर वे अगड़ी जाति और अति पिछड़ा वर्ग में भी सेंध लगा पाते हैं, तो यह मुकाबला बेहद कांटे का हो सकता है।

    प्रमुख चुनावी मुद्दे

    ​इस चुनाव में कई मुद्दे निर्णायक भूमिका निभाएंगे:

    1. विकास और सुशासन: नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए ‘सुशासन’ और ‘विकास’ के मुद्दे को लेकर जनता के बीच जाएगा। पुल, सड़क, बिजली और अन्य बुनियादी ढांचे में सुधार को वे अपनी उपलब्धि के रूप में पेश करेंगे।
    2. रोजगार और महंगाई: तेजस्वी यादव और महागठबंधन ‘रोजगार’ के मुद्दे को जोर-शोर से उठा रहे हैं। तेजस्वी ने 10 लाख सरकारी नौकरियों का वादा किया था, जिसे उन्होंने अपनी पिछली सरकार में पूरा करने की कोशिश की थी। इसके अलावा, बढ़ती महंगाई भी एक बड़ा मुद्दा हो सकता है, जिसका लाभ विपक्ष उठा सकता है।
    3. जातिगत जनगणना: बिहार में हुई जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी हो चुके हैं। राजद और महागठबंधन इसे ‘सामाजिक न्याय’ की जीत बताते हुए पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग के वोटों को एकजुट करने की कोशिश करेंगे। यह मुद्दा चुनाव में एक बड़ा गेम-चेंजर साबित हो सकता है।
    4. कानून व्यवस्था: विपक्ष हमेशा से राज्य की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाता रहा है। हालांकि, नीतीश कुमार के कार्यकाल में कानून व्यवस्था में सुधार हुआ है, लेकिन छोटी-मोटी घटनाओं को विपक्ष मुद्दा बना सकता है।
    5. केंद्र की योजनाएं: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाएं (जैसे आयुष्मान भारत, पीएम आवास योजना) भी एनडीए के लिए फायदेमंद साबित हो सकती हैं।

    निष्कर्ष

    ​2025 का बिहार चुनाव दोनों ही गठबंधनों के लिए एक बड़ी परीक्षा है। नीतीश कुमार अपने अनुभव और विकास के नाम पर वोट मांगेंगे, वहीं तेजस्वी यादव युवाओं के बीच अपनी लोकप्रियता और ‘रोजगार’ जैसे मुद्दों के दम पर वापसी की कोशिश करेंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि बिहार की जनता किस पर भरोसा करती है: ‘सुशासन बाबू’ की अनुभव पर या ‘युवा’ तेजस्वी की ऊर्जा पर। चुनाव से पहले, दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी रणनीति को मजबूत करने में लगे हैं, जिससे यह चुनाव एक दिलचस्प और कांटे की टक्कर वाला साबित होने की उम्मीद है।

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