बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के परिणामों ने विपक्ष के गठबंधन ‘इंडिया’ (I.N.D.I.A.) में गहन आंतरिक कलह और नेतृत्व संकट को जन्म दे दिया है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की ऐतिहासिक जीत और महागठबंधन (RJD, कांग्रेस, वाम दल) की करारी हार के बाद गठबंधन के भीतर आत्मनिरीक्षण के बजाय एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है।
कांग्रेस पर उठे सवाल
- महागठबंधन मात्र 35 सीटों पर सिमट गया, जबकि एनडीए ने 202 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया।
- इस निराशाजनक प्रदर्शन में, कांग्रेस पार्टी को तो सिर्फ 6 सीटें मिलीं, जिसने उसकी विश्वसनीयता पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।
- सहयोगी दलों, खासकर समाजवादी पार्टी (सपा) के एक विधायक ने कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए अखिलेश यादव को विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने का सुझाव दिया है।
- गठबंधन के भीतर कई क्षेत्रीय दल अब रणनीति, नेतृत्व और विश्वसनीयता पर खुलेआम सवाल उठा रहे हैं।
तालमेल की कमी
- हार के प्रमुख कारणों में से एक गठबंधन के भीतर तालमेल की कमी भी बताई जा रही है।
- आरजेडी और कांग्रेस के बीच शुरुआत से ही सीट बंटवारे और नेतृत्व को लेकर विवाद सामने आए थे।
- कई सीटों पर गठबंधन के सहयोगी दल ही एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे, जिसका सीधा फायदा एनडीए को मिला।
- झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) जैसी पार्टियों ने सीट-बंटवारे के फार्मूले से बाहर होकर चुनाव लड़ा, जिसने गहरी दरारों को उजागर कर दिया।
❓ विकल्प की तलाश
- बिहार की हार ने ‘इंडिया’ ब्लॉक को बैकफुट पर धकेल दिया है और इसके सामने विचार को फिर से परिभाषित करने की चुनौती खड़ी हो गई है।
- अब गठबंधन के भीतर ‘विकल्प की तलाश’ शुरू हो गई है, जहाँ कुछ नेता मानते हैं कि कांग्रेस अब नेतृत्व के लिए सबसे मजबूत चेहरा नहीं रही।
- हालांकि, कांग्रेस नेता के.सी. वेणुगोपाल ने इन अटकलों को खारिज किया है और कहा है कि गठबंधन भाजपा को हराने के अपने मुख्य उद्देश्य के लिए प्रतिबद्ध है और स्थानीय चुनाव स्थानीय समीकरणों पर निर्भर करते हैं।
बिहार के नतीजों ने साफ कर दिया है कि संगठन और समन्वय की कमी विपक्षी गठबंधन के लिए एक बड़ी चुनौती है, जिसे आने वाले चुनावों से पहले दूर करना जरूरी है।


